नहीं रहे चिपको आंदोलन के प्रणेता पर्यावरणविद् सुंदर लाल बहुगुणा, प्रधानमंत्री ने भी शोक जताया

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उत्‍तराखंड (देहरादून) : चिपको आंदोलन के प्रणेता पद्म विभूषण, पद्मश्री से सम्मानित और जाने-माने पर्यावरणविद् सुंदर लाल बहुगुणा का 94 साल की उम्र में शुक्रवार को निधन हो गया. उन्होंने ऋषिकेश एम्स में अंतिम सांस ली. कोरोना समेत अन्‍य बीमारियों से ग्रसित होने के कारण उन्‍हें 8 मई को एम्‍स में भर्ती कराया गया था. सुंदरलाल बहुगुणा की पर्यावरण के प्रति प्रतिबद्धता के चलते हम उन्हें वृक्षमित्र के नाम से भी जानते हैं. ऋषिकेश एम्स में उन्होंने अपनी अंतिम सासे ली. चिपको आंदोलन के प्रनेयता रहे सुंदर लाल बहुगुणा ने इसकी शुरुआत 1973 में उत्तराखंड के चमोली जिले से हुई थी. यहां बड़ी संख्या में किसानों ने पेड़ कटाई का विरोध करना शुरू किया था. वो राज्य के वन विभाग के ठेकेदारों के हाथों से कट रहे पेड़ों पर गुस्सा जाहिर कर रहे थे और उनपर अपना दावा कर रहे थे. इसकी शुरुआत सुंदरलाल बहुगुणा ने की थी और इसका नेतृत्व कर रहे थे.

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धीरे-धीरे यह आंदोलन बहुत बड़ा हो गया. इसे चिपको आंदोलन इसलिए कहते हैं क्योंकि इस आंदोलन के तहत लोग पेड़ों से चिपक जाते थे और उन्हें कटने से बचाते थे. इस अभियान में महिलाओं ने बढ़चढ़ कर अहम भूमिका निभाई थी. महिलाएं पेड़ से चिपक जाती थीं और कहती थीं कि अगर पेड़ काटना है तो पहले उन्हें काटा जाए. इस आंदोलन का नारा – “क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार. मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार” तय किया गया था. वर्ष 1971 में शराब दुकान खोलने के विरोध में सुन्दरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक अनशन तक किया था.

यह विरोध प्रदर्शन पूरे देश में फैल गया. 26 मार्च 1974 में चमोली जिला में जब ठेकेदार पेड़ो को काटने के लिए पधारे तब ग्रामीण महिलाएं पेड़ो से चिप्पकर खड़ी हो गईं. परिणामस्वरूप तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 15 साल के लिए पेड़ो को काटने पर रोक लगा दिया. चिपको आंदोलन की वजह से बहुगुणा विश्व में वृक्षमित्र के नाम प्रसिद्ध हो गए.

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