“स्त्री लेखन और समाज” विषय पर इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल के तहत की गई परिचर्चा
जमशेदपुर:- अंतरराष्ट्रीय संस्था इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल के झारखंड राज्य के तत्वाधान में तुलसी भवन के प्रयाग कक्ष में “स्त्री लेखन और समाज” विषय पर एक परिचर्चा और विचार मंथन कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस संस्था का राष्ट्रीय कार्यालय दिल्ली में स्थित है । जमशेदपुर में इस संस्था की अध्यक्षा डॉ आशा गुप्ता हैं जो पेशे से चिकित्सक और शहर की जानी-मानी साहित्यकार हैं। डॉ आशा गुप्ता ने संस्था का विस्तृत परिचय दिया और संस्था के उद्देश्यों से भी सबों को परिचित कराया । उन्होंने कहा कि स्त्री लेखन राष्ट्र और समाज की प्रगति को दिशा दे और साथ ही गंभीर विषयों को भी लेकर आगे बढ़े ।
कार्यक्रम में उपस्थित साहित्य सेविका और अपने राष्ट्रवादी विचारों के लिए जानी जाने वाली मंजू ठाकुर भी उपस्थित थीं, जिन्होंने कहा कि सशक्त लेखन आवश्यक है, साथ ही जरूरी है कि महिला रचनाकारों में किसी सम्मान के प्रति लोभ या लालच ना हो और उनकी कलम में राष्ट्र का जयघोष भी गूंजे। शहर की प्रसिद्ध लेखिका और कवयित्री प्रतिभा प्रसाद जी ने भी अपनी बातों को रखते हुए पारिवारिक मूल्यों पर स्त्री लेखन को आवश्यक बताया और कहा कि स्त्री को निर्भीक होकर परिवार को एकजुट रखने पर बल देना चाहिए और इस पर लिखना चाहिए।
कार्यक्रम की संचालन कर्ता और संस्था की महासचिव डॉ अनीता शर्मा ने कहा कि लेखन में शुद्धता और मानक बिंदु का होना आवश्यक है। स्त्रियां अपने लेखन को एक उत्कृष्ट मापदंड दें यह अपेक्षा रखी जाती है। तुलसी भवन के मानद सचिव प्रसेनजीत तिवारी ने कहा कि हमें लेखन को किसी श्रेणी या कोटि में नहीं बांटना चाहिए और साथ ही अपने लेखन की समीक्षा को खुले हृदय से स्वीकार करना चाहिए। संस्था की प्रवक्ता डॉ कल्याणी कबीर ने कहा कि स्त्रियां अपने लेखन के द्वारा अपनी पहचान और अस्तित्व को बल प्रदान करें और साथ ही परंपरा और तर्क के बीच संतुलन रखते हुए लेखन कार्य करें ।
साहित्यकार और कवि वरूण प्रभात ने विषय प्रवेश करते हुए कहा कि स्त्रियों को रूढ़िवादिता से बाहर निकलना होगा और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा विकसित करनी होगी। साथ ही उन्होंने साहित्यिक चोरी की भी भर्त्सना की । कवयित्री पद्मा प्रसाद ने कहा कि स्त्रियां भी स्त्रियों की सहायता करती हैं और स्त्री लेखन आपसी सहयोग से ही आगे बढ़ रहा है।
संवेदनशील कवयित्री सरिता सिंह ने अपने विचार रखते हुए कहा कि ग्रामीण पृष्ठभूमि में भी स्त्री लेखन काफी सशक्त नजर आता है। वहां महिलाएं अपने लेखन , लोकगीतों के माध्यम से अपनी बात रखती हैं और सकारात्मक रूप से सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करती हैं। इस परिचर्चा में जयंत
श्रीवास्तव और शिवनंदन प्रसाद भी उपस्थित थे। कुल मिलाकर यह परिचर्चा बहुत ही सार्थक रही और यह निर्णय लिया गया कि अगली बार हम सभी स्त्री लेखन के ही दूसरे आयामों पर चर्चा करने के लिए इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल के बैनर तले एकत्रित होंगे।