बिरसा मुण्डा – हमारे प्रेरणा स्रोत-अमर प्रीत सिंह काले
जमशेदपुर :- जब कभी भी अमर शहीद बिरसा मुण्डा के संघर्ष भरे जीवन पर ध्यान जाता है , आँखें नम हो जाती हैं साथ ही ऐसे वीर क्रांतिकारी , महा बलिदानी की देश के प्रति अपार निष्ठा एवं बहादुरी के क़िस्से से सीना चौड़ा हो जाता है , भुजाएँ तन जाती है और सिर सम्मान में उनके आगे झुक जाता है । एक ऐसा वीर बलिदानी जिसने अपनी पवित्र धरती के लिये, अपने समाज और अपने लोगों के लिये, अपनी संस्कृति के लिये और इन सभी से ऊपर अपने आत्म सम्मान और जनजातीय समुदाय के गौरव की रक्षा के लिये न केवल अंग्रेजों से लोहा लिया बल्कि उनके छक्के भी छुड़ा दिये।
आदिवासी संघर्ष गाथा की शुरुआत अट्ठारहवीं शताब्दी से पढ़ने को मिलती है. 1766 के पहाड़िया-विद्रोह से लेकर 1857 के ग़दर के बाद भी आदिवासी संघर्षरत रहे. सन 1895 से 1900 तक बिरसा मुंडा का महाविद्रोह ‘ऊलगुलान’ चला. आदिवासियों को लगातार जल-जंगल-ज़मीन और उनके प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल किया जाता रहा और वे इसके खिलाफ बुलंदी से आवाज उठाते रहे।
बिरसा मुण्डा का सर्वप्रथम ध्यान मुंडा समुदाय की ग़रीबी की ओर गया. आज की तरह ही आदिवासियों का जीवन तब भी अभावों से भरा हुआ था. न खाने को उचित भोजन था न पहनने को कपड़े. एक तरफ ग़रीबी थी और दूसरी तरफ ‘इंडियन फारेस्ट एक्ट’ 1882 ने उनके जंगल छीन लिए थे. जो जंगल निवास के हकदार थे, वही जंगलों से बेदख़ल कर दिए गए. यह देख बिरसा मुण्डा ने हथियार उठाया और अत्यंत बहादुरी से इस लड़ाई का नेतृत्व किया।
प्रारंभ में समाज सुधारक के रूप में खूब मान सम्मान कमाने वाले बिरसा मुण्डा समाज से बुराइयों को दूर करने में अपना पूरा समय देते थे. मदिरा पान से दूर रहना , जादू -टोना , पाखंड आदि से बचना , सात्विक जीवन यापन करना आदि उनके अभियान का मुख्य विषय था। सार में कहें तो यही कारण था बिरसा मुण्डा को पूरे राज्य में भगवान बिरसा मुण्डा बुलाया जाने लगा। अंग्रेजों का जुल्म बढता गया जिसे वे सहन नहीं कर सके ।तब उन्होंने प्रतिज्ञा ली की अग्रंजो के जुल्म के ख़िलाफ़ आर पार की लड़ाई लड़ेंगे। उनके द्वारा ज़ोरदार लड़ाई लड़ी गयी जिससे अंग्रेज बिरसा मुण्डा के नाम से ही थर-थर काँपने लगे थे । अंग्रेज़ी हुकूमत ने उनके ऊपर इनाम घोषित किया और किसी गद्दार ने इनाम की लालच में इन्हें रात में सोते वक्त पकड़वा दिया ।
बाद में अंग्रेजों ने उन्हें फांसी दे दी और इस तरह भगवान बिरसा मुण्डा सदा के लिये अमर हो गये।
बिरसा मुंडा एक ऐसा झारखण्ड का लाल हैं जिनके सपने मुझे लगता है , आज भी अधूरा है । यहां मौजूद खनिज संपदा और नैसर्गिक संसाधनों के एवज़ में जो विकास होना चाहिये था उससे यह इलाका आज भी मरहूम है। लोग अभी भी बड़ी संख्या में अशिक्षित हैं , बेरोज़गार हैं। लोगों को न ठीक से भोजन मिलता है , न तन ढंकने के लिए कपड़े मिलते हैं, उनका इलाज सही तरीक़े से नहीं हो पाता है जबकि यहां की परिसम्पतियों के दोहन से दूसरी जगहों पर संपन्नता फैलती है।
भाजपा सरकार में परम श्रद्धेय स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने झारखण्ड राज्य को मान्यता दी और आज भी नरेंद्र मोदी सरकार झारखण्ड को विशेष महत्व देती है । आशा करता हूँ कि जो सपना भगवान बिरसा मुण्डा जी ने देखा था उसको झारखंड में वर्तमान आदरणीय श्री हेमंत सोरेन जी की सरकार एवं केंद्र की आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार मिल कर पूरा करने की दिशा में ठोस कार्य योजना तैयार करेंगी और भगवान बिरसा मुण्डा जी के सपनों को पूरा करेगी।