UP में आखिरी चरण में 13 सीटों पर वोटिंग, जानें कैसे जातियों के चक्रव्यूह में फंस गईं NDA की ये 4 सीटें…
लोक आलोक न्यूज सेंट्रल डेस्क :- उत्तर प्रदेश के अंतिम चरण के चुनाव में जातियों का फेर एनडीए कैंडिडेट के लिए भारी पड़ने वाला है. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने ऐसे कैंडिडेट खड़े किए हैं कि एनडीए के लिए प्रमुख रूप से ये चार सीटें मुश्किल हो गईं हैं.
उत्तर प्रदेश में अंतिम चरण का चुनाव 1 जून को संपन्न हो रहा है. कुल 13 सीटों पर यहां मतदान है पर 4 सीटें ऐसी हैं जहां जातियों के चक्रव्यूह में एनडीए बहुत बुरी तरह फंसी हुई है. साल 2019 के लोक सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के दमदार प्रदर्शन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाराणसी में बहुत बड़े अंतर से जीत में यह तथ्य दबकर रह गया था कि पूर्वांचल की कई प्रमुख सीटों पर बेहद करीबी अंतर से हार-जीत हुई थी.
मछलीशहर, चंदौली, बलिया आदि में बहुत मामूली अंतर से पार्टी कैंडिडेट जीते थे. कम से कम पांच संसदीय सीट पार्टी हार भी गई थी. यही नहीं 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी के लिए पूर्वांचल दुखती रग साबित हुआ था.कई जिलों से बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया था.दरअसल चुनावों में जाति धर्म से से ऊपर हो जाती है. यह भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी खामी है पर भारत में इसे मान्यता प्राप्त है. आइये देखते हैं कि अंतिम चरण में मुख्य रूप से इन 4 सीटों पर किस तरह एनडीए फंस गई है.
1-संकट में हैं ये चार सीटें
इस बार भी पूर्वांचल की तमाम सीटों पर मुकाबला कड़ा हो सकता है. पर सातवें चरण में होने वाली कुल 13 सीटों में चार सीटें तो एनडीए के लिए इस तरह फंस गईं हैं कि राम का नाम ही बेड़ा पार लगा सकता है. घोसी में एनडीए की ओर से सुभासपा के प्रत्याशी अरविंद राजभर चुनाव लड़ रहे हैं जो पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश राजभर के लड़के हैं. पर यहां समाजवादी पार्टी ने राजीव राय और बीएसपी ने बालकृष्ण चौहान को प्रत्याशी को बनाकर बाजी कठिन कर दी है.
मिर्जापुर में एनडीए कैंडिडेट अपना दल की केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल का मुकाबला समाजवादी पार्टी के राजेंद्र एस बिंद से है. यहां बीएसपी के मनीष त्रिपाठी भी दौड़ में शामिल है. चंदौली में बीजेपी कैंडिडेट केंद्रीय मेंत्री महेंद्र नाथ पांडेय का काम बिगाड़ रहे हैं समाजवादी पार्टी के वीरेंद्र सिंह और बीएसपी के सतेंद्र मौर्या. सबसे हॉट सीट बलिया बन गई है जहां से बीजेपी कैंडिडेट पूर्व पीएम चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर का मुकाबला समाजवादी पार्टी के सनातन पांडेय से हो रहा है.
2-जातियों का चक्रव्यूह
पूर्वी यूपी में जातियों का चक्रव्यूह ऐसा है कि कोई भी पार्टी चाहकर भी अपने कोर वोटर्स के वोट भी नहीं सहेज सकती. दिक्कत यह है कि किसी भी पार्टी के कोर वोटर्स तभी तक पार्टी भक्त हैं जब तक उनकी जाति का कैंडिडेट उस पार्टी से है. अगर पार्टी का कैंडिडेट किसी और जाति से और मुकाबले में किसी दल से अपनी जाति का कैंडिडेट है तो कोर वोटर्स का भी मन बदल जाता है. बलिया में बीजेपी से नीरज शेखर उम्मीदवार हैं जो राजपूत हैं. बीजेपी के कोर वोटर्स ब्राह्मण हैं पर चूंकि समाजवादी पार्टी के कैंडिडेट सनातन पांडेय हैं इसलिए यहां ब्राह्मण वोट कहां जाएगा इस पर संदेह हो गया है. सनातन पांडेय दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं . पिछली बार बहुत मामूली वोटों से वो चुनाव हार गए थे.बताया जा रहा है कि बलिया सीट पर चुनाव राजपूत बनाम ब्राह्मण किया जा रहा है. बीजेपी ने कड़ी मशक्कत करके यहां के स्थानीय भूमिहार नेता नारद राय को समाजवादी पार्टी से लेकर आई है कि कुछ तो डैमेज कंट्रोल किया जा सके.
चंदौली में भी ब्राह्मण बनाम ठाकुर हो रहा है. यहां समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी राजपूत बिरादरी से हैं. वीरेंद्र सिंह यूपी में मंत्री रह चुके हैं . यहां जातियों का एक तीसरा एंगल भी है. बीएसीप कैंडिडेट मौर्या बिरादरी से आते हैं और इस सीट पर इनकी संख्या भी ठीक ठाक है. मौर्या लोग बीजेपी को वोट देते रहे हैं . पर इस बार कहां देंगे यह समय ही बताएगा.
घोसी में भी जाति अहम फैक्टर बन गया है. एनडीए के प्रत्याशी अरविंद राजभर को बीजेपी के कोर वोटर्स भूमिहार वोट मुश्किल से मिल रहे हैं. कारण यह है कि समाजवादी पार्टी ने भूमिहार प्रत्याशी राजीव राय को यहां से टिकट दिया है. बीएसपी बालकृष्ण चौहान भी अनिल राजभर के वोटों में सेंध लगा रहे हैं.
मिर्जापुर में केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने राजा भैया के खिलाफ ऐतिहासिक बयान देकर अपने लिए गड्ढे खोद लिए हैं. पटेल ने पिछले दिनों कहा था कि अब रानी के पेट से राजा नहीं पैदा होते ,अब ईवीएम से राजा पैदा होते हैं. इसके साथ ही बीएसपी कैंडिडेट मनीष त्रिपाठी और समाजवादी पार्टी के कैंडिडेट राजेंद्र एस बिंद भी अनुप्रिया पटेल को टक्कर देने के लिए तैयार बैठे हैं.
3-बीएसपी के उम्मीदवार
बीएसपी के बारे में आम तौर पर यह धारणा बन गई है कि वो बीजेपी की बी टीम के रूप में काम कर रही है. पर पूर्वी यूपी के कई सीटों पर वह एनडीए के लिए खलनायक बनती नजर आ रही है. कम से कम घोसी, चंदौली और मिर्जापुर में तो यह क्लीयर दिख रहा है. घोसी में बालकृष्ण चौहान पूर्व सांसद रह चुके हैं. घोसी में बीजेपी ने पूर्व मंत्री नोनिया जाति के नेता दारा सिंह चौहान को समाजवादी पार्टी से दलबदल कराकर पार्टी में लाई थी. यह सोचकर कि पूर्वी यूपी की कुछ सीटों पर उनका फायदा मिलेगा. पर यहां तो दारा सिंह चौहान के लिए अपने होम डिस्ट्रिक्ट के ही नोनिया वोट ट्रांसफर कराना भी मु्श्किल हो गया है.
इसी तरह चंदौली में बीएसपी उम्मीदवार सतेंद्र कुमार मौर्या बीजेपी उम्मीदवार महेंद्रनाथ पांडेय के लिए खतरा बन गए हैं. दरअसल बीजेपी यहां से उस समय से लगातार सीट जीत रही है जब पार्टी का कारवां अभी शुरूआती दौर में था. 1991, 1996 और 1999 में बीजेपी लगातार यहां से जीतती रही है. यहां से आनंद रत्न मौर्य ने बीजेपी के लिए हैट्रिक लगा चुके हैं. जाहिर है कि बीजेपी को मौर्य लोग वोट देते रहे हैं. इस बार मौर्य वोट बीएसपी कैंडिडेट सतेंद्र मौर्य के चलते खतरे में है. अगर ऐसा होता है तो चंदौली में महेंद्रनाथ पांडेय की हैट्रिक लगाने की कोशिश नाकामयाब हो जाएगी.
इसी तरह बहुजन समाज पार्टी के मनीष त्रिपाठी मिर्जापुर में अनुप्रिया पटेल को त्रिकोणीय मुकाबले में फंसा रहे हैं. यहां भी बीजेपी का कोर वोटर ब्राह्मण बीएसपी के साथ जा सकता है . क्योंकि यहां से एनडीए ने अपना दल (सोनेलाल) की अनुप्रिया पटेल उम्मीदवार है. ऐसे में कुछ ब्राह्मण भी अगर बीएसपी के साथ जाते हैं तो अनुप्रिया के साथ खेला हो सकता है.
4-समाजवादी पार्टी ने बेहतर प्रत्याशी दिए
इन चारों सीटों पर एनडीए के संकट का एक और कारण है जिसे नजरंदाज नहीं करना चाहिए. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि समाजवादी पार्टी ने इस बार बेहतर कैंडिडेट दिए हैं. खासकर इन चारों सीटों पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी स्थानीय समीकरणों और व्यक्तिगत योग्यताओं में बेहतर हैं.