मनीष सिंह "वंदन" आई टाइप आदित्यपुर जमशेदपुर झारखंड

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मेले…..ये ठेले……ये शहनाईयॉं

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जवां धड़कनों की….ये रानाइयॉं

कहती हैं मुझसे कि तू मौज कर

अकेले में बैठा है..क्या सोचकर ?

 

सरगोशियों का….तू ले ले मजा

चख ले….जमाने की रंगी फजा

फिर ना मिलेंगे, ये रुत ये नजारे

कब तक बहोगे..किनारे-किनारे ?

 

जीवन मिला है…खुलकर जियो

गरल हो सुधा हो झककर पियो

मैंने भी हामी में सर को हिलाया

जरा मुस्कुराकर किस्सा सुनाया ।

 

सुनो बात मेरी…..मेरे प्यारे बंधू

मैं हूं सीधा सादा..मुझमें है संधू

ऐसा नहीं कि मुझमें नहीं जोश

काबू में रखता हूं मैं अपने होश ।

घर का बड़ा हूं..सबकी नजर है

कहां हूॅं कैसा हूॅं सबको खबर है

बहुत काम करने हैं सबके लिए

अजी फुरसत कहां अपने लिए ??

 

रानाइयॉं : सुंदरता, सौंदर्य संधू : ईमानदारी

सरगोशियॉं : कानाफूसी

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