शीर्षक : बतकही- मनीष सिंह ” वंदन”
Advertisements
Advertisements
मेले…..ये ठेले……ये शहनाईयॉं
Advertisements
Advertisements
जवां धड़कनों की….ये रानाइयॉं
कहती हैं मुझसे कि तू मौज कर
अकेले में बैठा है..क्या सोचकर ?
सरगोशियों का….तू ले ले मजा
चख ले….जमाने की रंगी फजा
फिर ना मिलेंगे, ये रुत ये नजारे
कब तक बहोगे..किनारे-किनारे ?
जीवन मिला है…खुलकर जियो
गरल हो सुधा हो झककर पियो
मैंने भी हामी में सर को हिलाया
जरा मुस्कुराकर किस्सा सुनाया ।
सुनो बात मेरी…..मेरे प्यारे बंधू
मैं हूं सीधा सादा..मुझमें है संधू
ऐसा नहीं कि मुझमें नहीं जोश
काबू में रखता हूं मैं अपने होश ।
घर का बड़ा हूं..सबकी नजर है
कहां हूॅं कैसा हूॅं सबको खबर है
बहुत काम करने हैं सबके लिए
अजी फुरसत कहां अपने लिए ??
रानाइयॉं : सुंदरता, सौंदर्य संधू : ईमानदारी
सरगोशियॉं : कानाफूसी