जमशेदपुर : सोनारी आदर्श नगर फेज 11 में आयोजित भागवत ज्ञान यज्ञ के अंतिम दिन, आचार्य शैलेश कुमार त्रिपाठी ने व्यास पीठ के माध्यम से श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह का रोचक वर्णन प्रस्तुत किया| शैलेश कुमार त्रिपाठी ने कहा की विदर्भ के राजा भीष्मक की रुपवती कन्या रुक्मिणी थी। उसके पांच भाइयों में एक का नाम रुक्मि था। भगवान कृष्ण की यश कीर्ति सुनकर
रुक्मिणी उनका पति रुप में वरण करना चाहती थी किंतु उसका भाई रुक्मि अपनी बहन का विवाह चेदिराज शिशुपाल से करना चाहता था। यह जान कर रुक्मिणी ने ब्राह्मण के हाथ श्रीकृष्ण को पत्र भेजकर कहा कि वह अंबिका भवानी के मंदिर में उनकी प्रतीक्षा करेगी।वहां आकर वह उसे स्वीकार कर ले चलें अन्यथा वह प्राण त्याग कर लेंगी।
पत्र पढ़ते ही श्रीकृष्ण रथ पर सवार हो विदर्भ की राजधानी कुंडनपुर की ओर तीव्र गति से चलकर अंबिका मंदिर पहुंचे। रथ पर रुक्मिणी को बिठाकर वह द्वारिका की और लौट पड़े।रुक्मिणी के भाई ने श्रीकृष्ण पर आक्रमण कर दिया पर वह पराजित हुआ।रुक्मिणी के कहने पर भगवान ने दंडस्वरूप उसका केश काटकर जीवन दान देकर बंदी बना लिया।अंततः बलराम जी कहने पर श्रीकृष्ण ने उसको मुक्त कर दिया।तदनन्तर रुक्मिणी जी से विवाह कर भगवान द्वारका लौट गये जहां धूमधाम से विवाहोत्सव सम्पन्न हुआ।
इस काथा के साथ ही आज व्यास पीठ से प्रद्युम्न जन्म, स्यमन्तक मणि की कथा,जाम्वती और सत्यभामा से से श्रीकृष्ण का विवाह, जरासंध बध और कृष्ण सुदामा मिलन की तात्विक चर्चा हुई। अंत में उमाशंकर यादव और पवन यादव द्वारा आरती के पश्चात कथा सत्र को विराम दिया गया। लखन ठाकुर, गजेंद्र झा, के सी झा, नीलम झा सहित काफी संख्या में पुरुषों और महिलाओं की उपस्थिति रहीं।