शकुंतला हिन्दी साहित्य एवं सांस्कृतिक दर्पण के तत्वधान में शिक्षक दिवस के पुर्व संध्या पर काव्य गोष्ठी आयोजित……. दुपट्टे का यूंही कोना घुमा रही हूं अभी …
जमशेदपुर:- शकुंतला हिन्दी साहित्य एवंम सांस्कृतिक दर्पण के तत्वाधान में शिक्षक दिवस के पुर्व संध्या पर काव्य गोष्ठी का आयोजन मानगो पोस्ट ऑफिस रोड स्थित साउथ प्वाइंट स्कूल परिसर में किया गया। काव्य गोष्ठी का नेतृत्व संस्था की संस्थापक युवा कवयित्री अंकिता सिन्हा ने किया, जबकि अध्यक्षता करीम सिटी के प्रोफेसर अहमद बद्र और संचालन मुस्ताक राज ने किया।
मौके पर रिजवान औरंगाबादी, श्यामल सुमन, लखन विक्रांत, जफर हाशमी, हरी कुमार, नजीर अहमद, अजय मेहताब, शोभा किरण, सूरज सिंह राजपूत, संध्या सिन्हा, संतोष चौबे, माधवी उपाध्याय, शैलेंद्र साहिल, सोनी सुगंधा, लक्ष्मण प्रसाद, कुमार बंसत एक से बढ़कर एक गजल, कविता पाठ पढ़कर काव्य गोष्ठी को काफी भाव विभोर और रोमांचक बना दिया। युवा कवयित्री अंकिता सिन्हा की ओर से जो प्रस्तुति दी गई उसमे, हौसला कितना है हम में काश पहचानो कभी।
लड़कियों के दुख को माँओं की तरह जानो कभी।।
आदमी तो हैं, मगर इंसान बनना है हमें। हर तरह से देश की पहचान बनना है हमें।।
नारी शक्ति को तहे दिल से ज़रा मानो कभी। हौसला कितना….
झुलसती धूप में ज़ुल्फ़ों की ठंडी छाओं रख दूंगी। तेरे नक़्शे क़दम पर मैं तो अपने पाँव रख दूंगी।। ग़ज़ल में
काली रात से डरती नही हूँ, चाहे जितनी काली है। माँ की याद ही जीवन पथ पर राह दिखाने वाली है।। ज़रा ठहर के तेरे पास आ रही हूँ अभी। तेरे ख़याल से दुनिया बसा रही हूँ अभी।। तू सामने है तो लगता है एक जान हैं हम। या अपने आप से ख़ुद को मिला रही हूं अभी।। तेरे निगाह हमारीं नज़र उतारेगी मैं आईने को नज़र से सजा रही हूं अभी। निगाह भर के तुझ देख तो नही सकती। दुपट्टे का यूंही कोना घुमा रही हूँ अभी।। को उपस्थित साहित्यकारों ने खूब सराहा।