सृजन-संवाद की 112वीं गोष्ठी, ‘गीतों और कहानियों के गुलदस्ते से महकी शाम
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जमशेदपुर:- साहित्य-सिने-कला संस्था ‘सृजन-संवाद’ की 112वीं गोष्ठी ‘गुलदस्ता’ गीतों तथा कहानियों पर केन्द्रित रही। डॉ. विजय शर्मा ने कहानीकारों, टिप्पणीकारों, श्रोताओं-दर्शकों का स्वागत किया। उन्होंने बताया कि ‘सृजन संवाद’ पिछले 11 वर्षों से साहित्य, सिनेमा तथा विभिन्न कलाओं पर कार्यक्रम करते हुए अपनी एक पहचान बना चुका है। आज हम ‘गुलदस्ता’ ले कर हाजिर हैं। लखनऊ से डॉ. मंजुला मुरारी ने ‘आ चल के चलें…’ गीत से सबका मन मोह लिया। इसके पश्चात डॉ. मीनू रावत ने ‘युद्ध: क्या खोया क्या पाया’ तथा ‘नशा’ दो छोटी-छोटी कहानियों का पाठ किया जिस पर डॉ. ऋतु शुक्ला ने सारगर्भित टिप्पणी की उन्होंने बताया कि इन कहानियों में मनुष्य की असंवेदनशीलता और पशु पक्षी की संवेदनशीलता का परिचय मिलता है। ये आज के क्रूर समय को दिखाती हैं। ये छोटी कहानियाँ गागर में सागर भरने जैसी हैं।
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कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए गुजरात से उमा सिंह ने स्वरचित कविता ‘न टूटना पसंद है…’ को गा कर सुनाया, यह उद्बोधन गीत सबको बहुत पसंद आया और सब संग में गाने लगे। इसके बाद गीता दुबे ने अपनी कहानी ‘पगला’ का पाठ किया जिस पर डॉ. नेहा तिवारी ने टिप्पणी करते हुए कहा कि कहानी कई विमर्शों को साथ ले कर चलती है। ‘पगला’ कहानी में पात्रों के नाम भी समाज के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधि बन कर उभरते हैं। हम लालच में अंधे हो कर दूसरों की भावनाओं को समझने में असमर्थ हो गए हैं और बिना जाने दूसरों का मजाक उड़ाते हैं।
कार्यक्रम की समाप्ति की ओर उमा सिंह ने और गीत प्रस्तुत किए। राँची से अंशु तिवारी ने धन्यवाद ज्ञापन का भार संभाला। डॉ. विजय शर्मा ने गायकों, कहानीकारों तथा टिप्पणीकारों का परिचय दिया तथा उनके वक्तव्य पर टिप्पणी देते हुए कार्यक्रम का संचालन किया।
गूगल मीट पर ‘सृजन संवाद’ की 112वीं गोष्ठी में लखनऊ से डॉ. आर पाण्डेय, डॉ. मंजुला मुरारी, गुजरात से उमा सिंह, जमशेदपुर से डॉ. आशुतोष झा, गीता दुबे, कुमारी, खुशबू राय, डॉ. नेहा तिवारी, डॉ. रुचिका तिवारी, डॉ. ऋतु शुक्ला, डॉ. चन्द्रावती, शोभा रानी, उमा उपाध्याय आदि ने ‘गुलदस्ता’ में भाग लिया। कार्यक्रम की फ़ोटोग्राफ़ी डॉ. मंजुला मुरारी तथा अंशु तिवारी ने की।
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