सुप्रीम कोर्ट ने आजादी के अमृत महोत्सव पर कुछ अलग करने की दी सलाह, कहा- विचाराधीन कैदियों की रिहाई सही मायने में जश्न
दिल्ली : देश अपनी आजादी के 75 साल का जश्न मना रहा है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कुछ अलग हटकर करने की सलाह दी। सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों में आपराधिक मामलों का बोझ कम करने के लिए ‘कुछ अलग हटकर’ सोचने की जरूरत पर जोर दिया। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब देश अपनी आजादी के 75 साल पूरे करने जा रहा है तब प्रशासन को इस दिशा में कुछ जरूरी कदम उठाने चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस साल स्वतंत्रता दिवस से पहले कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे यह संकेत दिया जा सके कि सरकार इस पहलू पर गौर कर रही है। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज से कहा कि अगर इस साल सरकार द्वारा इस संबंध में कुछ किया जाता है तो इसका ‘बहुत सकारात्मक’ प्रभाव होगा। कुछ आउट ऑफ द बॉक्स सोचें। अगर आप कुछ कर सकते हैं, तो स्वतंत्रता दिवस से पहले सरकार को कुछ करने के लिए राजी करें, यह एक संकेत भेज सकता है।
10 साल बाद बरी किया जाता है तो, जीवन के साल वापस नहीं मिलते
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा, अगर न्यायपालिका 10 साल के भीतर मामलों का फैसला नहीं कर सकती है तो कैदियों को आदर्श रूप से जमानत पर छोड़ दिया जाना चाहिए। अगर किसी व्यक्ति को 10 साल बाद अंतत: बरी कर दिया जाता है तो उसे अपने जीवन के साल वापस नहीं मिल सकते हैं।
लंबी सजा काट चुके को रिहा करना सही मायने में उत्सव
जस्टिस कौल ने केंद्र सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) केएम नटराज से कहा, सरकार आजादी के 75 साल को ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के रूप में मना रही है। ऐसे विचाराधीन व वे कैदी जो अपनी सजा का एक बड़ा हिस्सा जेल में काट चुके हैं, उन्हें रिहा करने का उपाय करना सही मायने में उत्सव का उपयोग है।
15 अगस्त से पहले कुछ शुरुआत जरूर करें
एएसजी द्वारा यह कहने पर कि वह इस संबंध में निर्देश लाएंगे, पीठ ने कहा, यह केवल इस साल हो सकता है, बाद में नहीं होगा। पीठ ने कहा कि 15 अगस्त से पहले कुछ शुरुआत करें। कम से कम कुछ टोकन के तौर पर तुरंत किया जा सकता है। इससे एक बड़ा संदेश जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि लोगों को सलाखों के पीछे डालना या जमानत का विरोध करना। कभी भी समाधान नहीं हो सकता है।
जमानत में देरी पर नाखुशी जताई थी
शीर्ष अदालत ने पिछले हफ्ते दोषियों की अपील लंबित रहने तक उनके जमानत आवेदनों की सुनवाई में काफी देरी पर नाखुशी प्रकट की थी और यह कहते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खिंचाई की थी कि उसे ‘आउट ऑफ द बॉक्स’ सोचना शुरू कर देना चाहिए और तुरंत निपटारे के लिए छुट्टी के दिन भी बैठना चाहिए।