जमशेदपुर की साहित्य, सिनेमा एवं कला की संस्था ‘सृजन संवाद’ की 139वीं संगोष्ठी का किया गया आयोजन स्ट्रीमयार्ड तथा फ़ेसबुक लाइव पर…

0
Advertisements
Advertisements

जमशेदपुर :- जमशेदपुर की साहित्य, सिनेमा एवं कला की संस्था ‘सृजन संवाद’ की 139वीं संगोष्ठी का आयोजन स्ट्रीमयार्ड तथा फ़ेसबुक लाइव पर किया गया। रविवार शाम छ: बजे ‘पाठक की नजर से’ विषय पर वर्धा हिन्दी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर डॉ. सुप्रिया पाठक ने गरिमा श्रीवास्तव लिखित उपन्यास ‘आउशवित्ज़’ तथा जमशेदपुर से साहित्य-सिने अध्येता डॉ. विजय शर्मा ने रबिशंकार बल के उपन्यास ‘दोज़खनामा’ पर अपने-अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन ‘यायावरी वाया भोजपुरी’ के संस्थापक वैभव मणि त्रिपाठी ने किया।

Advertisements
Advertisements

14वें साल की इस गोष्ठी में सर्वप्रथम वैभव मणि त्रिपाठी ने वक्ताओं-श्रोताओं का परिचय देते हुए डॉ. सुप्रिया पाठक को बोलने के लिए आमंत्रित किया। डॉ. पाठक ने उपन्यास में निहित उद्देश्यों को बड़ी बारीकी के साथ श्रोताओं के समक्ष खोला। उपन्यास एक लंबे काल खंड में हुए अत्याचारों, युद्धों के मध्य स्त्री की स्थिति, उसके मजबूती के साथ खड़े रहने और अपने प्रेम केलिए किए उसके संघर्षों का आख्यान है। युद्ध कहीं हो, कैसा भी हो, घायल स्त्री होती है, उसके हिस्से हार-जीत नहीं दु:ख-दर्द आते हैं। उपन्यास का वितान कलकत्ता, बांग्लादेश से लेकर यूरोप तक फ़ैला हुआ है। उपन्यास स्त्री अध्ययन, स्त्री विमर्श केलिए आमांत्रित करता है। एक स्त्री अपने से अधिक अपनी बेटी को बचाने, उसे मुक्त करने केलिए प्रयास करती है। वह न केवल स्वयं के लिए आर्थिक प्रबंध करती है वरन दूसरों को रोजगार देती है।

 

दूसरी वक्ता के रूप में डॉ. शर्मा ने अपनी बात पूर्व वक्ता की बातों से सहमत होते हुए प्रारंभ की। उन्होंने उपन्यास ‘आउशवित्ज़’ पढ़ा है और वाणी प्रकाशन से आई उनकी पुस्तक ‘नाज़ी यातना शिविरों की त्रासद गाथा’ इसी विषय को स्पर्श करती है, अत: इस उपन्यास को पढ़ते हुए वे बहुत विचलित हुई थीं। इसके पश्चात डॉ. शर्मा ने बांग्ला के उपन्यासकार रबिशंकर बल के हिन्दी में अनुवादित उपन्यास ‘दोज़खनामा’ पर अपनी बात रखते हुए कृति की खूबियों का उल्लेख किया। उपन्यास की शैली अनूठी है, इसमें दो भिन्न काल के रचनाकार – गालिब और मंटो को कब्र में होते हुए वार्तालाप करते दिखाया गया है। पूरा उपन्यास दास्तानगोई के अंदाज में प्रस्तुत है। शेरो-शायरी है, दास्ताने हैं, गालिब-मंटो की जीवनी है, उनके गढ़े पात्र हैं, उनके संघर्ष-कठिनाइयाँ हैं। अनुवाद की तारीफ़ करते हुए उन्होंने कहा, पढते हुए बार-बार याद करना पड़ा कि वे मूल नहीं अनुवाद पढ़ रही हैं।

See also  चक्रधरपुर में फायरिंग, पुलिस के हाथ लगे कोई सुराग नहीं

कार्यक्रम ने अचानक एक नया सुखद मोड़ लिया। चूँकि ‘आउशवित्ज़’ की उपन्यासकार डॉ. गरिमा श्रीवास्तव और ‘दोज़खनामा’ की अनुवादिका अमृता बेरा सृजन संवाद लाइव से जुड़ी हुई थीं, उन्हें स्टूडियो में आमंत्रित किया और दोनों ने अपनी रचना प्रक्रिया से जुड़ी कुछ बातों का जिक्र किया। उन्हें वक्ताओं की कही बातें उत्साहवर्धक लगीं। संचालक त्रिपाठी ने वक्ताओं और दोनों नवागंतुकों से कई मानीखेज प्रश्न पूछे जिनका उन लोगों ने समुचित उत्तर दिया। उन्होंने वक्ताओं-श्रोताओं का धन्यवाद करते हुए कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा की।

139वे सृजन संवाद कार्यक्रम में सृजन संवाद फ़ेसबुक लाइव के माध्यम में देहरादून से सिने-समीक्षक मन मोहन चड्ढा, शशि भूषण बडोनी, बनारस से जयदेव दास, जमशेदपुर से डॉ. क्षमा त्रिपाठी, डॉ. मीनू रावत, आभा विश्वकर्मा, आनंद शर्मा, इलाहाबाद से स्शांत चट्टोपाध्याय, राँची से तकनीकि सहयोग देने केलिए ‘यायावरी वाया भोजपुरी’ फ़ेम के वैभव मणि त्रिपाठी, गोरखपुर से पत्रकार अनुराग रंजन, बैंग्लोर से पत्रकार अनघा, मुंबई से डॉ. देविका सजी, साथ ही रचनाकार नरेंद्र पुणरीक, विवेक मिश्र, भगवान दास मोरवाल आदि जुड़े। इनके प्रश्नों तथा टिप्पणियों से कार्यक्रम और अधिक सफ़ल हुआ। एक और अच्छी बात हुई इस कार्यक्रम से सृजन संवाद में कुछ नए सदस्य जुड़े।

Thanks for your Feedback!

You may have missed