राम नवमी: जानिए क्यों मनाई जाती है राम नवमी और कब से हुई इसकी शुरुआत…

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लोक आलोक सेंट्रल डेस्क:– मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्म की पावन स्मृति…राम नवमी हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जिसे भगवान श्रीराम के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन त्रेतायुग में अयोध्या नरेश दशरथ और रानी कौशल्या के घर भगवान विष्णु ने राम के रूप में अवतार लिया था। राम नवमी, न केवल एक पर्व है, बल्कि यह धर्म, मर्यादा, सत्य और न्याय की प्रतीक बन चुकी है।

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शुरुआत कब हुई थी राम नवमी की?

राम नवमी का पर्व वैदिक काल से ही मनाया जा रहा है। पुराणों और रामायण जैसे ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। लेकिन समाजिक रूप से इसे व्यापक रूप में मनाने की परंपरा त्रेतायुग से ही शुरू हो गई थी। धीरे-धीरे विभिन्न राज्यों में इसकी पूजा विधियों में भिन्नता तो आई, लेकिन आस्था एक जैसी ही रही। खासकर अयोध्या, वाराणसी, चित्रकूट और रामेश्वरम जैसे तीर्थस्थलों पर इसकी धूम देखने लायक होती है।

कैसे मनाई जाती है राम नवमी?

राम नवमी पर श्रद्धालु व्रत रखते हैं, मंदिरों में विशेष पूजन होता है और रामायण का पाठ किया जाता है। जगह-जगह झांकियां निकाली जाती हैं जिसमें भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण और हनुमान के स्वरूपों को दिखाया जाता है। अयोध्या में सरयू नदी के तट पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु एकत्र होकर रामलला का जन्म उत्सव मनाते हैं। ठीक दोपहर 12 बजे, जब रामजी का जन्म हुआ था, तब विशेष आरती और जयघोष होता है।

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राम नवमी का सामाजिक संदेश

यह पर्व केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि यह जीवन में मर्यादा, संयम, कर्तव्य और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देता है। भगवान राम को ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ इसीलिए कहा गया क्योंकि उन्होंने हर परिस्थिति में धर्म और न्याय का पालन किया। राम नवमी, हमें यह सिखाती है कि सच्चाई और अच्छाई चाहे जितनी कठिनाई में क्यों न हो, अंततः वही विजयी होती है।

आज भी क्यों है प्रासंगिक?

आज के युग में जब समाज कई तरह की चुनौतियों और भ्रम में है, तब राम नवमी जैसे पर्व हमारे भीतर एक नैतिक चेतना जगाने का कार्य करते हैं। यह पर्व हमारी संस्कृति, आस्था और परंपरा की जीवंत मिसाल है जो हमें अपने मूल्यों की ओर लौटने की प्रेरणा देता है।

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