सूर्यमंदिर परिसर में संगीतमय श्रीराम कथा के दूसरे दिन धनुष यज्ञ एवं सीता स्वयंवर के मार्मिक प्रसंग में आनंदित हुए श्रोता

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■ भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में तोड़ दिया शिव-पिनाक, आनंदित हुए श्रद्धालु।

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जमशेदपुर (संवाददाता ):– सिदगोड़ा सूर्य मंदिर कमिटी द्वारा श्रीराम मंदिर स्थापना के द्वितीय वर्षगांठ के अवसर पर संगीतमय श्रीराम कथा के द्वितीय दिन कथा प्रारंभ से पहले वैदिक मंत्रोच्चार के बीच मंदिर कमेटी के महासचिव गुँजन यादव एवं उनकी धर्मपत्नी, शशिकांत सिंह व उनकी धर्मपत्नी एवं जीवन साहू ने अपने धर्मपत्नी संग कथा व्यास पीठ एवं व्यास का विधिवत पूजन किया। पूजन पश्चात हरिद्वार से पधारे कथा व्यास परम् पूज्य साध्वी डॉ विश्वेश्वरी देवी जी का स्वागत किया गया। स्वागत के पश्चात कथा व्यास साध्वी डॉ विश्वेश्वरी देवी जी ने श्रीराम कथा के द्वितीय दिन धनुष यज्ञ एवं सीता स्वयंवर के प्रसंग का सुंदर वर्णन किया।

व्यास साध्वी डॉ विश्वेश्वरी देवी जी ने श्रीराम व माता सीता के स्वयंवर की आनन्द दिव्य कथा का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि निराकार रूप से सर्वत्र विद्यमान परमात्मा ज्ञानियों को आनन्द प्रदान करते हैं, किन्तु भक्तों को आनन्द देने के लिए उन्हें निराकार से साकार बनकर आना पड़ता है। श्री राम अवतार अनेक संस्कृतियों को जाति एवं भाषाओं को तथा खंडित भारत वर्ष को जोड़ने के लिए व उन्होंने अवध और मिथिला की संस्कृतियों को जोड़ा। किष्किन्धा एवं लंका तक की यात्रा करके अनेक जातियों एवं पृथक आचार विचार वाले लोगों को जोड़कर अखंड भारत का निर्माण किया।

पूज्य डॉ साध्वी ने कथा में प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के स्वयंवर के लिए धनुष यज्ञ का आयोजन किया। राजा जनक ने कहा कि जो शिव पिनाक को खंडन करेगा वो सीता से नाता जोड़ेगा। उस धनुष को तोड़ने के लिए कई राजा व राजकुमार पहुंचे लेकिन सभी विफल रहें। ऐसे में राजा जनक ने भरी सभा में कहा कि आज धरती वीरों से विहिन हो गयी है, सभी अपने घर जाएं। इसके बाद लक्ष्मण को क्रोध आया और उन्होंने कहा कि अगर श्रीराम की आज्ञा हो तो धनुष क्या, पूरे ब्रह्मांड को गेंद की तरह उठा लूं। पूज्य साध्वी जी ने कहा कि धनुष अहंकार का प्रतीक है व राम ज्ञान का प्रतीक। जब अहंकारी व्यक्ति को ज्ञान का स्पर्श होता है तब अहंकार का नाश हो जाता है। श्रीराम में वो अहंकार नहीं था और श्रीराम ने विश्वामित्र की आज्ञा पाकर धनुष को तोड़ दिया, जिसका अर्थ पूरे विश्व में दुष्टों को सावधान करना था कि अब कोई चाहे कितना भी शक्तिशाली राक्षस वृत्ति का व्यक्ति हो वह जीवित नही बचेगा। धनुष टूटने का पता चलने पर परशुराम जी का स्वयंवर सभा आना एवं श्रीराम-लक्ष्मण से तर्क-वितर्क करके संतुष्ट होना कि श्रीराम पूरे विश्व का कल्याण करने में सक्षम है। धनुष भंग के पश्चात श्री सीता जी श्री राम के गले में वरमाला डाल कर उनका वरण करती हैं और मिथिला में जश्न का आरम्भ होता हैं। देवता भी आकाश से फूलों की वर्षा करते हैं। उपस्थित श्रद्धालुओं ने अत्यंत आनंद पूर्वक भाव से स्वयंवर प्रसंग में उत्सव मनाया। पूरे कथा में मनोरम झांकी प्रस्तुत की गई।

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कथा के दौरान भाजपा प्रदेश प्रवक्ता कुणाल षाड़ंगी, पूर्व प्रदेश प्रवक्ता राजेश शुक्ल, वरिष्ठ समाजसेवी चंद्रगुप्त सिंह, आनंद बिहारी दुबे, नकुल तिवारी, चंद्रशेखर मिश्रा, कल्याणी शरण, गुरुदेव सिंह राजा, गणेश बिहारी, शीतला मंदिर समिति, श्याम भक्त मंडल, युवा एकता संघ के सदस्यगण समेत सूर्य मंदिर कमेटी के अध्यक्ष संजीव सिंह, महासचिव गुँजन यादव, श्रीराम कथा के प्रभारी कमलेश सिंह, संजय सिंह, मांन्तु बनर्जी, विनय शर्मा, अखिलेश चौधरी, राजेश यादव, शशिकांत सिंह, दीपक विश्वास, दिनेश कुमार, भूपेंद्र सिंह, मिथिलेश सिंह यादव, रामबाबू तिवारी, सुशांत पांडा, पवन अग्रवाल, अमरजीत सिंह राजा, राकेश सिंह, कुमार अभिषेक, प्रेम झा, कंचन दत्ता, सुरेश शर्मा, कौस्तव रॉय, बिनोद सिंह, संतोष ठाकुर, रमेश नाग, मृत्युंजय यादव, मिथिलेश साव, मुकेश कुमार समेत अन्य उपस्थित थे।

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