मुंडेश्वरी धाम: कैमूर के इस मंदिर की है अनोखी कहानी…जान के रह जाएंगे दंग, इस मंदिर में बलि देने के बाद भी नहीं मरता है बकरा…

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लोक आलोक न्यूज सेंट्रल डेस्क:बिहार में कैमूर की पहाड़ियों में स्थित देश के सबसे प्राचीनतम मंदिरों में से एक मां मुंडेश्वरी देवी का मंदिर।माता मुंडेश्वरी मंदिर में भक्तों के आंखों के सामने चमत्कार होता है. इस मंदिर में कई तरह के रहस्य समाहित हैं. ऐसी मान्यता है कि भक्तों द्वारा सच्चे मन से यहां मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है. मनोकामना पूरी होने के बाद भक्त यहां बकरे की बली देते है. इस मंदिर में बलि की प्रकिया थोड़ी अलग है. यहां सात्विक तरीके से रक्तहीन बलि दी जाती है. भक्त मन्नत पूरी होने के बाद यहां बलि चढ़ाने के लिए बकरा ले कर आते है, लेकिन यहां बकरे का जीवन नहीं लिया जाता. यहां बस बकरे को मां के चरणों में लिटा देने से बलि पूरी हो जाती है.

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इस मंदिर को शक्ति पीठ भी कहते हैं जिसके बारे में कई बातें प्रचलित हैं जो इस मंदिर के विशेष धार्मिक महत्व को दर्शाता है. यहां कई ऐसे रहस्य भी हैं जिसके बारे में अब तक कोई नहीं जान पाया. यहां बिना रक्त बहाए बकरे के बलि दी जाती है और पांच मुख वाले भगवान शंकर की प्राचीन मूर्ति की जो दिन में तीन बार रंग बदलती है. पहाड़ों पर मौजूद माता के मंदिर पर पहुंचने के लिए ह लगभग 608 फीट ऊंचे पहाड़ की चढ़ाई करनी पड़ती है. यहां प्राप्त शिलालेख के अनुसार यह मंदिर 389 ईस्वी के आसपास का है जो इसके प्राचीनतम होने का सबूत है.

कहते हैं कि इस मंदिर में माता के स्थापित होने की कहानी भी बड़ी रोचक है. मान्यता के अनुसार इस इलाके में चंड और मुंड नाम के असुर रहते थे, जो लोगों को प्रताड़ित करते थे. जिनकी पुकार सुन माता भवानी पृथ्वी पर आईं थीं और इनका वध करने के लिए जब यहां पहुंचीं तो सबसे पहले चंड का वध किया उसके निधन के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी पर छिप गया था. लेकिन माता इस पहाड़ी पर पहुंच कर मुंड का भी वध कर दिया था. इसी के बाद ये जगह माता मुंडेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ.

मंदिर के अंदर दो ऐसे रहस्य है जिसकी सच्चाई आज तक कोई नहीं जान पाया जिसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. अपनी आंखों से देखते भी हैं, लेकिन समझ नहीं पाते हैं कि आखिरकार ये होता कैसे है? मंदिर के पुजारी ने हमें बताया की इस मंदिर में प्राचीन काल से ही बलि की प्रथा है. माता से मांगी हुई मनोकामना पूरी हो जाती है वे इस मंदिर में आकर बकरे की बलि देते हैं. लेकिन, यहां की बलि दूसरी किसी भी जगह की बलि प्रथा से अलग है.यहां माता के चरण में बलि भी चढ़ जाती है, लेकिन खून का एक कतरा बाहर नहीं निकलता है. पूजा होने के बाद बलि देने के लिए बकरे को मंदिर के भीतर माता के समक्ष लाया जाता है. बकरे को माता के सामने लाने के बाद मंदिर के पुजारी ने बकरे के चारों पैरो को मज़बूती से पकड़ लेता है और माता के चरणों में स्पर्श करने के बाद मंत्र का उच्चारण करता है. बकरे को माता के चरण के सामने रख देता है और फिर बकरे पर पूजा किया हुआ चावल छिड़कता है. जैसे ही वो चावल बकरे पर पड़ता है बकरा अचेत हो जाता है.

कुछ देर तक बकरा अचेत रहता है. जब पुजारी कुछ मंत्र पढ़ते हैं और माता के चरण में पड़े फूल को फिर से बकरे पर फेंकते हैं तो बकरा ऐसा जगता है मानो वो नींद से जागा हो. इस प्रकार बकरे की बलि की प्रक्रिया पूरी हो जाती है. यही इस बलि की अनोखी परम्परा है जो सदियों से चली आ रही है.

मां मुंडेश्वरी के धाम में हर साल लगभग तीन बार मेला लगता है। शारदीय नवरात्रि व चैत्र माह के नवरात्र में तथा तीसरा मेला माघ माह में मेला लगता है। इसके अलावा धार्मिक न्यास परिषद की ओर से वर्ष में एक बार मुंडेश्वरी महोत्सव का भी आयोजन किया जाता है। नवरात्रि में मंदिर के दो दरवाजे खोल दिए जाते है। जिससे कि श्रद्धालुओं को परेशानी न हो।

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