जानें कैसे बनी आनंदीबाई जोशी भारत की सबसे पहली महिला डॉक्टर, कैसे करना पड़ा था परेशानियों का सामना , इनकी कहानी सुन आजाएंगे आपके भी आंख में आसूं…

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लोक आलोक न्यूज सेंट्रल डेस्क:भारत की पहली महिला डॉक्टर “आनंदीबाई जोशी” थीं। उनका पूरा नाम आनंदी गोपाल जोशी था और उनका जन्म 31 मार्च 1865 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था। आनंदीबाई जोशी भारतीय समाज में महिलाओं की शिक्षा और स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में जानी जाती हैं।

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आनंदीबाई का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका मूल नाम यमुना था और बहुत कम उम्र में ही उनकी शादी गोपालराव जोशी से हो गई थी, जो उनसे उम्र में काफी बड़े थे। गोपालराव जोशी एक प्रगतिशील विचारधारा वाले व्यक्ति थे और उन्होंने आनंदीबाई को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया।

गोपालराव जोशी ने आनंदीबाई को चिकित्सा शिक्षा प्राप्त करने के लिए अमेरिका भेजने का निर्णय लिया। यह उस समय के भारतीय समाज में एक बहुत ही साहसिक कदम था, क्योंकि महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति नहीं थी, खासकर चिकित्सा के क्षेत्र में। 1883 में, आनंदीबाई ने अमेरिका के पेंसिल्वेनिया स्थित महिला मेडिकल कॉलेज (अब Drexel University College of Medicine) में प्रवेश लिया।

आनंदीबाई ने अमेरिका में कई चुनौतियों का सामना किया, जैसे भाषा, संस्कृति और आर्थिक समस्याएँ। लेकिन उन्होंने अपनी दृढ़ संकल्प और मेहनत से सभी बाधाओं को पार किया। 1886 में, आनंदीबाई जोशी ने एमडी की डिग्री प्राप्त की, और इस प्रकार वह भारत की पहली महिला डॉक्टर बनीं। उनकी थीसिस का विषय “Obstetrics among the Aryan Hindus” था।

अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, आनंदीबाई भारत लौट आईं और कोल्हापुर में महिला अस्पताल में चिकित्सक के रूप में कार्य करने लगीं। उन्होंने महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए और समाज में चिकित्सा शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाई।

अफसोस की बात है कि आनंदीबाई का स्वास्थ्य खराब रहने लगा और उन्हें क्षय रोग (tuberculosis) हो गया। उनकी चिकित्सा शिक्षा और समाज सेवा के कार्य के बावजूद, वे इस रोग से नहीं उबर पाईं। 26 फरवरी 1887 को केवल 22 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

आनंदीबाई जोशी का जीवन और उनकी उपलब्धियाँ भारतीय महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उन्होंने यह साबित किया कि दृढ़ संकल्प और समर्पण के साथ कोई भी बाधा पार की जा सकती है। उनकी स्मृति में कई संस्थाओं और संगठनों ने चिकित्सा के क्षेत्र में उनके योगदान को मान्यता दी है। भारत सरकार ने उनकी स्मृति में एक डाक टिकट भी जारी किया है।

आनंदीबाई जोशी का जीवन एक प्रेरणादायक कहानी है जो यह दर्शाता है कि कैसे सामाजिक बंधनों और कठिनाइयों को पार करते हुए एक महिला ने चिकित्सा के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई। उनकी उपलब्धियाँ न केवल भारतीय महिलाओं के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं। आनंदीबाई ने यह सिद्ध किया कि शिक्षा और समर्पण के माध्यम से किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। उनका योगदान भारतीय चिकित्सा के इतिहास में सदा अमर रहेगा।

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