140वें सृजन संवाद में धुनों की यात्रा…

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जमशेदपुर – ‘सृजन संवाद’ साहित्य, सिनेमा एवं कला की संस्था ने मासकॉम विभाग, करीम सिटी कॉलेज एवं न्यू डेल्ही फ़िल्म फ़ाउंडेशन के सहयोग से 140वीं संगोष्ठी का आयोजन स्ट्रीमयार्ड तथा फ़ेसबुक लाइव का आयोजन किया। शनिवार शाम साढ़े छ: बजे सिने-व्यक्तित्व पंकज राग ने अपनी किताब ‘धुनों की यात्रा’ पर अपनी बात रखी। कार्यक्रम का संचालन करीम सिटी के कॉलेज के मासकॉम की विभागाध्यक्ष डॉ. नेहा तिवारी ने किया। डॉ. राकेश पाण्डेय, डॉ. मंजुला मुरारी, न्यू डेल्ही फ़िल्म फ़ाउंडेशन के संस्थापक-सह सचिव आशीष कुमार तथा इंडिपेंडेंट फ़िल्ममेकर सुदीप सोहनी सिंह ने प्रश्नों द्वारा कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। स्ट्रीमयार्ड का संचालन, स्वागत एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. विजय शर्मा ने किया।

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गोष्ठी में संचालक ने विषय का परिचय देते हुए स्वागत केलिए डॉ. विजय शर्मा को आमंत्रित किया। उन्होंने बताया कि अब तक सृजन संवाद में कई सिने-व्यक्तित्व आमंत्रित किए गए हैं, जिनमें से सिने-पत्रकार-लेखक सोमा चटर्जी, सत्या सरन, अनिरुद्ध भट्टाचार्य, गायिका उषा उथुप निर्देशक गौतम घोष, स्वतंत्र फ़िल्ममेकर सुदीप सोहनी आदि प्रमुख रहे हैं। 140 वीं गोष्ठी में पंकज राग जी आमंत्रित हैं। इसके साथ उन्होंने मंच पर उपस्थित लोगों, फ़ेसबुक लाइव से जुड़े दर्शक/श्रोताओं का स्वागत करते हुए उन्हें प्रश्न पूछने केलिए आमंत्रित किया।

मंच पर उपस्थित लोगों का परिचय देते हुए डॉ. नेहा तिवारी ने बताया कि सेंट स्टीफ़न कॉलेज से पढ़े पंकज राग मध्य प्रदेश कैडर के आए. ए. एस हैं और आजकल दिल्ली में पदस्थ हैं। पंकज राग पूर्व में भारत भवन के ट्रस्टी सचिव तथा डॉयरेक्टर एफ़टीआईआई, पुणे रहे हैं, ‘धुनों की यात्रा (पाँच संस्करण), ‘ये भूमंडल की रात है’, ‘1857: दि ओरल ट्रेडीशन’, ‘सिने संगीत कैफ़े’ के साथ इनके कई आलेख प्रकाशित हैं। पंकज राग को अन्य सम्मानों के अलावा केदार सम्मान प्राप्त है।

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डॉ. राकेश पाण्डेय, डॉ. मंजुला मुरारी, आशीष कुमार सिंह तथा सुदीप सोहनी के प्रश्नों का उत्तर देते हुए आमंत्रित वक्ता पंकज राग ने विस्तार से बताया कि ‘धुनों की यात्रा’ केलिए उन्होंने हजारों गीतों को विभिन्न स्रोतों से एकत्र किया। कुछ उन्हें आसानी से प्राप्त हुए, कुछ केलिए काफ़ी मेहनत करनी पड़ी। इसे लिखने में करीब आठ साल लगे। कुछ लोगों ने खुशी से दिया, कुछ ने आनाकानी की। उस जमाने में इंटरनेट, यूट्यूब आदि की सुविधा नहीं थी, गाने कैसेट और कैसेट पर रिकॉर्ड करके सुनना होता था। आज भी उनके पास गानों का एक बड़ा जखीरा है। उन्होंने करीब सौ बरसों के फ़िल्म संगीत को अपनी इस किताब में समेटा है। इसमें विभिन्न शैलियों का चित्रण है, जिनमें सामंती, बोहेमियन, धार्मिक, पौराणिक, नैतिक, सचिन देव बर्मन, आर डी बर्मन, मदन मोहन, शिवराम, सलिल चौधरी, सर्वहारा संगीत आदि तमाम शैलियाँ हैं।

उन्होंने कहा, एक पीढ़ी केलिए शोर भी रचनात्मक था। भारतीय जाज़ और विदेशी जाज़ का अंतर बताया। विदेशी जाज़ में विचार और विद्रोह था। किताब में मात्र तथ्यात्मक सूचना न देते हुए व्यापक संदर्भ में गीतों और गीतकारों को प्रस्तुत किया गया है। ‘सिने संगीत कैफ़े’ पर भी बात हुई।

वक्ताओं-श्रोताओं का धन्यवाद करते हुए कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा हुई

140वे सृजन संवाद कार्यक्रम में सृजन संवाद फ़ेसबुक लाइव के माध्यम में देहरादून से सिने-समीक्षक मन मोहन चड्ढा, शशि भूषण बडोनी, जमशेदपुर से डॉ. क्षमा त्रिपाठी, डॉ. मीनू रावत, आभा विश्वकर्मा, अर्चना अनुपम, ऋचा द्विवेदी, राँची से ‘यायावरी वाया भोजपुरी’ फ़ेम के वैभव मणि त्रिपाठी, कोलकोता से हितेंद्र पटेल, बैंग्लोर से पत्रकार अनघा मारीषा, मुंबई से डॉ. देविका सजी, दिल्ली से वंदना राग, आशीष कुमार सिंह, गरिमा श्रीवास्तव, रश्मि रावत, वी4यू की माधवी श्रीवास्तव, गोमिया से प्रमोद कुमार बर्णवाल आदि जुड़े। इनके प्रश्नों तथा टिप्पणियों से कार्यक्रम और अधिक सफ़ल हुआ। एक और अच्छी बात हुई इस कार्यक्रम से सृजन संवाद में कुछ नए सदस्य जुड़े। अगले माह सृजन संवाद में मृणाल सेन की शताब्दी मनाई जाएगी।

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