संयुक्त सुरक्षा अभियानों ने तोड़ी नक्सली नेटवर्क की कमर, लगातार आत्मसमर्पण और मुठभेड़ों से लाल आतंक के सफाए की ओर बढ़ता भारत, छत्तीसगढ़ से झारखंड तक धाराशायी हो रहे नक्सली कमांडर…

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रायपुर/रांची :-  देश में वर्षों से आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बने नक्सलवाद का अब पतन शुरू हो गया है। छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्यों में चल रहे केंद्र और राज्य पुलिस बलों के संयुक्त अभियानों ने नक्सलियों को बुरी तरह से झकझोर दिया है। पिछले कुछ महीनों में दर्जनों शीर्ष नक्सली या तो मारे गए हैं या उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया है। यह परिदृश्य इस ओर इशारा करता है कि नक्सलवाद अब अंतिम चरण में पहुंच चुका है।

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छत्तीसगढ़ में लगातार मुठभेड़, कमजोर पड़ा गढ़
छत्तीसगढ़ के सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर और दंतेवाड़ा जैसे नक्सल प्रभावित जिलों में सीआरपीएफ, डीआरजी और एसटीएफ ने मिलकर कई सफल ऑपरेशन चलाए हैं। हाल ही में हुई मुठभेड़ों में कई खूंखार नक्सली मारे गए, जिनमें लाखों के इनामी कमांडर भी शामिल हैं। बीजापुर में एक अभियान में सुरक्षाबलों ने सात नक्सलियों को मार गिराया, वहीं नारायणपुर में भारी मात्रा में हथियार और विस्फोटक बरामद हुए हैं।

झारखंड में टूट रही है पकड़, बढ़ रही है आत्मसमर्पण की संख्या
झारखंड में चतरा, लातेहार, गढ़वा और सरायकेला जिलों में नक्सली अब छुपने को मजबूर हैं। पुलिस और सीआरपीएफ के संयुक्त दबाव में नक्सली अपनी पकड़ खोते जा रहे हैं। पिछले दो महीनों में झारखंड में करीब 40 से अधिक नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। पुलिस के मुताबिक, अब नक्सली गुटों में आपसी विश्वास की भी कमी देखी जा रही है।

तकनीकी निगरानी और विकास ने बदली तस्वीर
सरकार और सुरक्षाबलों की रणनीति अब पूरी तरह आधुनिक हो चुकी है। ड्रोन से निगरानी, सेटेलाइट इंटेलिजेंस और गांव-स्तरीय खुफिया नेटवर्क ने नक्सल गतिविधियों को काबू में कर दिया है। साथ ही, गांवों में तेजी से हो रहे सड़क, बिजली, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे विकास कार्यों ने आम जनता को भी नक्सलियों से दूर किया है।

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पुनर्वास नीति ने दिलाया समाज में भरोसा
सरकार की आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति भी नक्सलियों को मुख्यधारा में लौटने का अवसर दे रही है। आत्मसमर्पण करने वालों को सरकारी योजनाओं का लाभ, नौकरी प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता दी जा रही है। इससे कई युवा जो पहले बंदूक उठाने को मजबूर थे, अब समाज में सम्मानजनक जीवन जीने की राह पर हैं। देशभर में सुरक्षाबलों की मुहिम और सरकार की योजनाओं के चलते नक्सलवाद का प्रभाव अब बहुत सीमित हो गया है। कुछ जेबों में अब भी नक्सली गतिविधियां शेष हैं, लेकिन मौजूदा गति को देखकर कहा जा सकता है कि ‘लाल आतंक’ अब अपने अंतिम सांसें गिन रहा है।

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