Jharkhand Famous Temple: जानिए आखिर क्या खास है चांडिल के इस जयदा बूढ़ा शिव मंदिर में…इसके कण कण में विराजते है स्वयं महादेव…

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लोक आलोक न्यूज सेंट्रल डेस्क-18वीं-19वीं शदी के मध्यकालीन दिनों की बात है. केरा (अब खरसावां) के राजा जयदेव सिंह एक बार सुर्णरेखा नदी के तट पर स्थित केरा के जंगलों में शिकार करने पहुंचे थे. उस दौरान यहां के जंगलों में शेर, बाघ भी हुआ करते थे. राजा जयदेव सिंह शिकार पर थे, एक हरिण जिसका शिकार राजा करना चाहते थे, लेकिन हरिण एक पत्थर के पास जाकर छूप गयी, राजा ने देखा कि वह साधारण पत्थर नहीं बल्कि शिवलिंग था

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हरिण जब भगवान शिव के शरण में चली गयी, तो राजा ने उसका शिकार नहीं किया, क्योंकि तीर शिवलिंग में लगने की आशंका थी. जब राजा जयदेव सिंह घर लौटे तो बूढ़े शिव बाबा की कृपा हुई और उन्हें यह सपना आया कि वहां शिवलिंग जिसकी वे पूजा करें.

ब्रह्मानंद सरस्वती और ग्रामीणों के कठोर परिश्रम से मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ जो आज अपनी भव्यता लिए खड़ा है जिसका मनोरमन दृश्य राष्ट्रीय राजमार्ग 33 से ही दिख जाता है.

बूढ़ा शिव बाबा मंदिर में 15 से 20 फीट की दूरी पर एक ही जैसे और एक ही आकार के दो शिवलिंग है इसलिए इसे जोड़ा शिवलिंग भी कहा जाता है. इसके बाद यहां खुदाई कार्य शुरू किया गया, इस दौरान जहां भी खुदाई की गयी वहां से अलग अलग आकार के शिवलिंग निकलता गया. इसलिए मंदिर कमेटी ने खुदाई कार्य को रोक दिया. दो मुख्य शिवलिंग वाले मंदिर के बगल में एक और मंदिर है जहां दर्जनों की संख्सा में अलग अलग आकार वाले शिवलिंग है जो खुदाई में मिले थे.

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खुदाई के दौरान यहां कई ऐसे पत्थर मिले जिसपर माता पार्वती, भगवन गणेश, कार्तिक की प्रतिमा उकेरी हुई थी. इसलिए इसे भगवान शिव का घर भी कहते है जहां उनका पूरा परिवार वास करता है. इस मंदिर प्रांगण में शिवलिंग के ठीक सामने बड़े रुप में नंदी की प्रतिमा का निर्माण कराया गया है जिसकी पूजा श्रद्धालु पूरी भक्तिभाव से करते हैं. हनुमान जी की प्रतिमा भी स्थापित की गयी है.

इस मंदिर में सावन में लाखों भक्त जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं. पूरे सावन भक्त दूर दराज से कांवर लेकर इस मंदिर में आते हैं. वहीं सैकड़ों भक्त यहां से जल उठा कर बेड़ाबेला, लोहरिया जल चढ़ाने के लिए ले जाते हैं. मकर संक्रांत में यहां विशेष पूजा और मेले का आयोजन होता है, जिसमें लाखों भक्त, श्रद्धालू शामिल होते हैं.

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