बीते कई महीनो से टाइम पर नही चल रही है जनशताब्दी एक्सप्रेस, इस वर्ष तीन महीनों में 300 घंटे से भी ज्यादा समय हुआ बर्बाद, लापरवाह सिस्टम से दबा जा रहा रेलवे…

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जमशेदपुर : कहते है कि जीवन में समय का महत्व सबसे ज्यादा होता है। समय से मूल्यवान कुछ नही होता। साथ ही यह भी कहा जाता है कि एक साल का मूल्य समझने के लिए एक छात्र से पूछें जो एक ग्रेड में फेल हो गया हो। एक महीने का मूल्य समझने के लिए, एक माँ से पूछें जिसने समय से पहले बच्चे को जन्म दिया हो। एक दिन का महत्व उस व्यक्ति से पूछिए जिसकी एक दिन की पगार ना मिली हो। एक सप्ताह का मूल्य समझने के लिए, एक साप्ताहिक समाचार पत्र के संपादक से पूछें। एक घंटे का मूल्य समझने के लिए, उन प्रेमियों से पूछें जो मिलने का इंतज़ार कर रहे हैं। एक मिनट का मूल्य समझने के लिए, उस व्यक्ति से पूछें जो ट्रेन से चूक गया हो। एक सेकंड का मूल्य समझने के लिए, उस व्यक्ति से पूछें जो अभी-अभी दुर्घटना से बचा हो। एक मिलीसेकंड का मूल्य समझने के लिए, उस व्यक्ति से पूछें जिसने ओलंपिक में रजत पदक जीता हो। कुल मिलाकर अगर बात की जाए तो समय का हमारे जीवन में इतना महत्व है की एक मिलीसेकंड से लेकर एक साल तक का महत्व इन बातों से हमें पता चल जाता है।

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खास बात यह है कि इस महत्व में ट्रेन भी शामिल है। लेकिन ट्रेन की वजह से कितने लोगो का वक्त बर्बाद हो जाता है इस पर रेलवे को कोई चिंता नहीं है। कई लोगो का काम वक्त पर नही होने से कितने का नुकसान हो जाता है इससे भी रेलवे को फर्क नहीं है। बात करें सिर्फ एक ट्रेन हावड़ा जनशताब्दी की तो वर्ष 2024 में एक भी दिन हावड़ा जनशताब्दी समय से यात्रियों को नही पहुंचाई है। ज्ञात हो कि पिछले तीन महीनों में आंकड़ों की बात की जाए तो औसतन दो घंटे लेट प्रतिदिन जनशताब्दी चल रही है। इस मामले में कई दफा अधिकारियों से बात करने की कोशिश भी की गई लेकिन अधिकारी बात करने से बचते रहे। हालांकि  ट्रेन लेट क्यों होती है इसका सीधा जवाब किसी के पास नही है। रेलवे के सिर्फ एक ट्रेन के द्वारा बर्बाद किए गए वक्त का हिसाब अगर लगाया जाए तो लगभग 300 घंटे बर्बाद सिर्फ जनशताब्दी के द्वारा किया गया है। इस तरह से टाटानगर स्टेशन से न जाने कितनी ट्रेनों का परिचालन होता है । जरा सोचिए की एक ट्रेन के द्वारा अगर इतना वक्त बर्बाद होता है तो सिर्फ एक मंडल चक्रधरपुर ने यात्रियों का कितना वक्त बर्बाद किया। अब तो यूं कह सकते है कि रेलवे के लिए यात्रियों का वक्त बर्बाद करना अब कानून में शामिल होने जैसा हो गया है। हालांकि यात्रियों के बीच जब इसका सर्वे करने लोक आलोक न्यूज की टीम जब टाटानगर स्टेशन पहुंची तो यात्री काफी नाराज दिखे। उनका सीधा सा कहना है की टाटानगर से हावड़ा की दूरी मात्र चार घंटे की है लेकिन इसे तय करने में 8- 10 घंटे लगना सिस्टम की लापरवाही का नतीजा है। अगर प्रतिदिन देर ही करना है तो बेहतर है कि ट्रेन की टाइम ही बदल दी जाए। कई बार इसकी शिकायत भी की गई लेकिन अधिकारियों के कान पर यात्रियों की परेशानी को लेकर  जूं नहीं रेंग रहा है।

अब देखना यह है कि रेलवे की लापरवाही को सिस्टम तले दबे हुए अधिकारी ठीक करते है या भविष्य में भी यह लापरवाही बरकरार रहेगी।

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