स्वर्ण पदक से केवल एक कदम दूर, भारतीय पहलवान रवि कुमार दहिया
टोक्यो ओलंपिक : स्वर्ण पदक से सिर्फ एक कदम दूर हैं, भारतीय पहलवान रवि कुमार दहिया ओलंपिक के फाइनल में पहुंच गए हैं, कुश्ती स्पर्धा के पुरुषों की फ्रीस्टाइल 57 किग्रा वर्ग के सेमीफाइनल में कजाखस्तान के सानायेव नूरीस्लाम को हराकर भारतीय पहलवान कुश्ती के फाइनल में पहुंच गए हैं. सेमीफाइनल में जीत के साथ ही रवि दहिया के नाम पदक पक्का हो गया है. क्या किसी गांव की किस्मत को एक पहलवान की ओलिंपिक में सफलता से जोड़ा जा सकता है. कम से कम हरियाणा के सोनीपत जिले के नाहरी गांव के 15,000 लोग तो ऐसा ही सोचते हैं. एक ऐसा गांव जहां पेयजल की उचित व्यवस्था नहीं है. एक ऐसा गांव जहां बिजली केवल दो घंटे ही दर्शन देती है. एक ऐसा गांव जहां उचित सीवेज लाइन नहीं है. एक ऐसा गांव जहां सुविधाओं के नाम पर केवल एक पशु चिकित्सालय है. वह गांव बेसब्री से इंतजार कर रहा है रवि दहिया ओलंपिक से पदक लेकर लौटे. किसान के पुत्र तथा शांत और शर्मीले मिजाज के रवि इस गांव के तीसरे ओलंपियन हैं. ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व कर चुके महावीर सिंह (मास्को ओलंपिक 1980 और लास एंजिल्स ओलंपिक 1984) तथा अमित दहिया (लंदन ओलंपिक 2012) भी इसी गांव के रहने वाले हैं.
Faad !
What a brilliant win by Ravi Kumar Dahiya to qualify for the semifinal. Him along with #DeepakPunia real contenders now. #Tokyo2020 #Wrestling pic.twitter.com/2tHTvCXWAu— Virender Sehwag (@virendersehwag) August 4, 2021
लेकिन गांव वाले ऐसा क्यों सोचते हैं कि 24 वर्षीय रवि के पदक जीतने से नाहरी का भाग्य बदल जाएगा. इसके पीछे भी एक कहानी है. महावीर सिंह के ओलिंपिक में दो बार देश का प्रतिनिधित्व करने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल ने उनसे उनकी इच्छा के बारे में पूछा तो उन्होंने गांव में पशु चिकित्सालय खोलने का आग्रह किया. मुख्यमंत्री ने इस पर अमल किया और पशु चिकित्सालय बन गया.
अब गांव वालों का मानना है कि यदि रवि टोक्यो में अच्छा प्रदर्शन करता है तो नाहरी भी सुर्खियों में आ जाएगा तथा सरकार उस गांव में कुछ विकास परियोजनाएं शुरू कर सकती है जहां 4000 परिवार रहते हैं. नाहरी के सरपंच सुनील कुमार दहिया ने कहा, ‘इस गांव ने देश को तीन ओलंपियन दिये हैं. हमें पूरा विश्वास है कि रवि पदक जीतेगा और उसकी सफलता से गांव का विकास भी शुरू हो जाएगा.
उन्होंने कहा, ‘यहां कोई अच्छा अस्पताल नहीं है. हमें सोनीपत या नरेला जाना पड़ता है. यहां कोई स्टेडियम नहीं है. हमने छोटा स्टेडियम बनाया है, लेकिन उसमें मैट, अकादमी या कोच नहीं है. यदि सुविधाएं हों तो गांव के बच्चे बेहतर जीवन जी सकते हैं.’ गांव वालों की विकास से जुड़ी उम्मीदें रवि पर टिकी हैं.
राकेश प्रत्येक दिन नाहरी से 60 किलोमीटर दूर छत्रसाल स्टेडियम में अभ्यास कर रहे अपने बेटे के लिये दूध और मक्खन लेकर आते थे ताकि उनके बेटे को सर्वोत्तम आहार मिले. वह सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर जाग जाते. अपने करीबी रेलवे स्टेशन तक पहुंचने के लिये पांच किलोमीटर चलते. फिर आजादपुर में उतरते और वहां से दो किलोमीटर पैदल चलकर छत्रसाल स्टेडियम में पहुंचते.
वापस लौटने के बाद राकेश खेतों में काम करते. कोविड-19 के कारण लगाये गये लॉकडाउन से पहले लगातार 12 वर्षों तक उनकी यह दिनचर्या रही. राकेश ने सुनिश्चित किया कि उनका बेटा उनके बलिदानों का सम्मान करना सीखे. उन्होंने कहा, ‘उसकी मां उसके लिये मक्खन बनाया और मैं उसे कटोरे में ले गया था. रवि ने पानी हटाने के लिये सारा मक्खन मैदान पर गिरा दिया. मैंने उससे कहा कि हम बेहद मुश्किलों में उसके लिये अच्छा आहार जुटा पाते हैं और उसे लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए मैंने उससे कहा कि वह उसे बेकार न जाने दे उसे मैदान से उठाकर मक्खन खाना होगा.
रवि तब छह साल का था जब उनके पिता ने उन्हें कुश्ती से जोड़ा था. राकेश ने कहा, ‘उसका शुरू से एकमात्र सपना ओलंपिक पदक जीतना है. वह इसके अलावा कुछ नहीं जानता.’यह तो वक्त ही बताएगा कि क्या रवि ओलंपिक में पदक जीतकर लौटेगा लेकिन नाहरी दिल थामकर उनका इंतजार कर रहा है.