“चार बार मुख्यमंत्री, हर बार नई उम्मीदें: हेमंत सोरेन ने फिर संभाली झारखंड की कमान”, हेमंत सोरेन: चौथी बार झारखंड के मुख्यमंत्री बनने वाले जननायक की पूरी कहानी विस्तार से…

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झारखंड :- झारखंड की राजनीति में हेमंत सोरेन का नाम न केवल एक मुख्यमंत्री के रूप में बल्कि एक मजबूत नेतृत्वकर्ता और सामाजिक न्याय के प्रतीक के रूप में लिया जाता है। हाल ही में उन्होंने चौथी बार झारखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, जो उनके करिश्माई नेतृत्व और जनाधार का स्पष्ट प्रमाण है। हेमंत सोरेन का राजनीतिक सफर संघर्षों, उपलब्धियों और झारखंड की मूलभूत समस्याओं के समाधान के लिए किए गए प्रयासों से भरा हुआ है।

हेमंत सोरेन का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

हेमंत सोरेन का जन्म 10 अगस्त 1975 को झारखंड के दुमका जिले में हुआ। वे झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक और झारखंड के प्रसिद्ध नेता शिबू सोरेन के पुत्र हैं। उनका परिवार झारखंड की आदिवासी राजनीति में लंबे समय से सक्रिय रहा है।

हेमंत ने प्रारंभिक शिक्षा झारखंड में ही प्राप्त की और बाद में रांची के प्रतिष्ठित बिरसा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में दाखिला लिया। हालांकि, पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने अपने पिता के संघर्षों और आंदोलन से प्रेरणा लेते हुए अपनी पढ़ाई छोड़ दी और राजनीति में कदम रखा।

राजनीतिक सफर की शुरुआत

हेमंत सोरेन का राजनीतिक करियर 2005 में शुरू हुआ, जब वे झारखंड मुक्ति मोर्चा में सक्रिय भूमिका निभाने लगे। उन्होंने झारखंड की जनजातीय और ग्रामीण आबादी के मुद्दों को उठाकर जल्दी ही अपनी अलग पहचान बनाई।

पहला चुनाव और विधायक बनना

2009 में हेमंत सोरेन ने पहली बार झारखंड विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। यह उनकी राजनीतिक यात्रा का महत्वपूर्ण मोड़ था। उन्हें झामुमो का युवा चेहरा माना जाने लगा और पार्टी के भविष्य के नेता के रूप में देखा जाने लगा।

उपमुख्यमंत्री से मुख्यमंत्री तक का सफर

2009 में विधानसभा में जीत के बाद, हेमंत को झारखंड सरकार में उपमुख्यमंत्री का पद मिला। उनकी कार्यशैली और जनता से जुड़ाव ने उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए एक मजबूत दावेदार बना दिया।

2013 में, राजनीतिक अस्थिरता के बीच उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली। पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद, उन्होंने राज्य में राजनीतिक स्थिरता लाने और आदिवासी समुदाय के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए कई नीतियां बनाईं।

झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल

पहला कार्यकाल (2013-2014):

हेमंत सोरेन का पहला कार्यकाल राजनीतिक अस्थिरता के बीच शुरू हुआ, लेकिन उन्होंने अपनी योजनाओं से जनता का विश्वास जीतने में सफलता पाई। उन्होंने जल, जंगल और जमीन के अधिकारों को प्राथमिकता दी और कई जनहित योजनाएं शुरू कीं।

दूसरा और तीसरा कार्यकाल (2019 से अब तक):

2019 में हुए विधानसभा चुनाव में, झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ गठबंधन कर शानदार जीत दर्ज की। मुख्यमंत्री बनने के बाद, उन्होंने राज्य में रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा और आदिवासी कल्याण के क्षेत्र में बड़े सुधार किए।

चुनौतियों और विवादों का सामना

हेमंत सोरेन का राजनीतिक सफर आसान नहीं रहा। उन्हें कई विवादों और चुनौतियों का सामना करना पड़ा:

1. पारिवारिक दबाव:
उनके पिता शिबू सोरेन झारखंड के जननायक माने जाते हैं, और इस छवि को बनाए रखना हेमंत के लिए एक बड़ी चुनौती थी।


2. राजनीतिक अस्थिरता:
झारखंड में अक्सर सरकारें गिरने का इतिहास रहा है। हेमंत ने इस अस्थिरता को दूर करते हुए स्थिर शासन देने का प्रयास किया।


3. आरोप-प्रत्यारोप:
विपक्ष ने कई बार उनकी नीतियों और फैसलों पर सवाल उठाए। खनन पट्टों से जुड़े विवाद ने भी उनकी सरकार की छवि को प्रभावित किया, लेकिन वे इन चुनौतियों से निपटने में कामयाब रहे।



हेमंत सोरेन की विचारधारा और नीतियां

आदिवासी अधिकारों की रक्षा:

हेमंत ने हमेशा झारखंड की मूलभूत समस्याओं, जैसे जल, जंगल और जमीन के मुद्दों को प्राथमिकता दी। उनका मानना है कि झारखंड के आदिवासी समुदाय को उनके संसाधनों पर प्राथमिक अधिकार मिलना चाहिए।

रोजगार सृजन:

राज्य में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है। उन्होंने मुख्यमंत्री रोजगार सृजन योजना जैसी नीतियों के जरिए युवाओं को रोजगार के अवसर देने पर जोर दिया।

श्रमिक कल्याण:

हेमंत सोरेन ने प्रवासी मजदूरों की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया। कोविड-19 महामारी के दौरान, उन्होंने राज्य से बाहर काम कर रहे झारखंड के मजदूरों को वापस लाने और उनके पुनर्वास के लिए कई पहल कीं।

शिक्षा और स्वास्थ्य:

राज्य में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति को सुधारने के लिए उन्होंने बड़े सुधार किए। उनका फोकस प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को मजबूत बनाने के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने पर रहा।

व्यक्तिगत जीवन और प्रेरणा स्रोत

हेमंत सोरेन का व्यक्तिगत जीवन भी प्रेरणा का स्रोत है। उनकी पत्नी कल्पना सोरेन और उनके दो बच्चे हमेशा उनके साथ खड़े रहे हैं। उनके जीवन में सादगी और अनुशासन झलकता है।

हेमंत का झारखंड की संस्कृति और परंपराओं से गहरा जुड़ाव है। वे आदिवासी पर्वों और रीति-रिवाजों को बढ़ावा देने के लिए भी प्रयासरत रहते हैं।

चौथी बार मुख्यमंत्री: क्या हैं प्राथमिकताएं?

हेमंत सोरेन के चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद झारखंड की जनता उनसे बड़ी उम्मीदें रखती है।

1. आर्थिक सुधार:
झारखंड की अर्थव्यवस्था को मजबूत करना उनकी प्राथमिकता होगी। खासतौर पर खनिज संपदा का सही उपयोग और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाना।


2. आदिवासी कल्याण:
राज्य की जनजातीय आबादी को सशक्त बनाना और उनके अधिकारों की रक्षा करना उनकी सरकार की प्राथमिकता रहेगी।


3. शिक्षा और स्वास्थ्य:
ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को और अधिक सुलभ बनाना।


4. बेरोजगारी और पलायन रोकना:
युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना और पलायन की समस्या का समाधान करना।

हेमंत सोरेन न केवल झारखंड की राजनीति का एक बड़ा चेहरा हैं, बल्कि वे एक ऐसे नेता हैं, जिन्होंने राज्य की समस्याओं को जमीनी स्तर पर समझा और उन्हें हल करने का प्रयास किया। उनकी चौथी बार मुख्यमंत्री बनने की यह यात्रा यह साबित करती है कि जनता का उनके प्रति विश्वास अटूट है।

अब, झारखंड की जनता उनसे राज्य को नई ऊंचाइयों पर ले जाने और विकास के साथ सामाजिक न्याय को प्राथमिकता देने की उम्मीद करती है। हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झारखंड का भविष्य कैसा होगा, यह तो समय बताएगा, लेकिन उनकी अब तक की यात्रा ने यह जरूर सिद्ध कर दिया है कि वे झारखंड के सच्चे जननायक हैं।

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