झारखंड के पूर्व CM रघुवर दास ने नई स्थानीय नीति को बताया असंवैधानिक, आदिवासी व मूलवासियों को नहीं मिलेगा लाभ
झारखण्ड:- पिछले दिनों झारखंड कैबिनेट में राज्य स्तरीय प्रतियोगिता परीक्षा में स्थानीय भाषा को अनिवार्य करने पर पूर्व सीएम श्री दास ने कहा कि इसमें हिंदी को छोड़ अन्य भाषा को शामिल किया गया है जो उचित नहीं है. यह हेमंत सरकार की सोची-समझी साजिश है, ताकि नयी स्थानीय नीति के तहत युवा नीति कानूनी उलझन में फंसी रहे और नियुक्तियां न हो सके.
पूर्व सीएम ने कहा कि जिस प्रकार झारखंड में ट्रांसफर-पोस्टिंग एक उद्योग बन गया है, अब सरकार नियुक्तियों को भी उद्योग बनाना चाह रही है. राज्य सरकार की नयी नियुक्ति नियमावली यहां के जातिगत और भाषागत संरचना को नुकसान पहुंचाने की एक बड़ी साजिश रही है. बांग्ला और उड़िया भाषा को शामिल करने का हमलोग स्वागत करते हैं, लेकिन राष्ट्रभाषा हिंदी की उपेक्षा बर्दाश्त करने योग्य नहीं है.उन्होंने कहा कि नयी नियुक्ति नियमावली के माध्यम से झारखंड में बाहरी लोगों की नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया जा रहा है. नये प्रावधान के बाद देश के किसी भी हिस्से में रहनेवाला व्यक्ति सिर्फ झारखंड से 10वी और 12वीं की परीक्षा पास कर यहां नौकरी प्राप्त कर सकता है. राज्य के अधिकांश छात्र जनजातीय भाषा की बजाय हिन्दी भाषा में पढ़ते हैं. वर्तमान सरकार ने जान-बूझकर हिंदी को ही परीक्षा प्रक्रिया से बाहर कर दिया, ताकि यहां के छात्रों को नुकसान हो.
पूर्व कि भाजपा सरकार ने 2016 में पहली से 10वीं तक की परीक्षा पास करनेवालो को नौकरी का प्रावधान किया था. उसी प्रावधान का श्रेय यह सरकार ले रही है जबकि उसने सिर्फ 10वीं कि परीक्षा पास करने का प्रावधान कर यहां के छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया है.उन्होंने कहा कि पूर्व कि भाजपा सरकार ने JPSC और JSSC की परीक्षा में स्थानीय भाषाओं को शामिल किया था. संताली, मुंडा, हो, खड़िया, कुड़ूख, कुरमाली, खोरठा, नागपुरी, पंचपरगनिया व अन्य भाषाओं को शामिल किया गया था. वर्तमान सरकार ने विगत डेढ़ साल में नियुक्ति तो नहीं की, लेकिन नियुक्तियों को भी उलझाने की मंशा से नियुक्ति नियामवली में संशोधन करने का काम जरूर किया है. प्रेसवार्ता में मीडिया प्रभारी शिवपूजन पाठक एवं सह मीडिया प्रभारी अशोक बड़ाईक भी उपस्थित थे.