आदित्यपुर थाने में कवरेज के दौरान पत्रकार से थानेदार ने किया दुर्व्यहार , फिर मांगी माफ़ी , अपराधिक घटनाओं के वजह से “खिसियाई बिल्ली खंभा नोचे” जैसी स्थिति में थानेदार आलोक दुबे…

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आलोक दुबे, आदित्यपुर थाना प्रभारी

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आदित्यपुर:- पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है लेकिन जब प्रशासन के अधिकारी को ही चौथे स्तंभ से समस्या होने लगे तो अधिकारी सवालों के घेरे में आने लगते है। ताजा मामला आदित्यपुर थाने का है। जहां थानेदार आलोक दुबे ने बुधवार को एक लोकल चैनल के पत्रकार के साथ पहले बदसलूकी की फिर माफी मांगकर मामले को समाप्त करवा दिया. मामला यह हुआ कि मारपीट का एक फरियादी लहूलुहान होकर शिकायत करने थाना पहुंचे थे. पुलिस चिकित्सकीय उपचार के लिए ले जा रहे थे. इसी बीच एक लोकल चैनल के पत्रकार घायल युवक का वीडियो बनाकर मामले को जानने का प्रयास करने लगे. यह वाक्या अंदर बैठे थानेदार सीसीटीवी कैमरे में देख रहे थे.जिन्हे यह रास नहीं आया और बाहर आकर पत्रकार को डांटते हुए अपने अंगरक्षक के सहारे उन्हें थाने के अंदर लेकर चले गये.अंदाज कुछ ऐसा था जैसे किसी अपराधी को पकड़ लिया गया हो।  इस वाकया को वहां खड़े अन्य पत्रकार भी देख रहे थे जो यह जानने के लिए थाने के अंदर पहुंचे कि आखिरकार पत्रकार ने कौन सा गुनाह कर दिया. लेकिन बाकी पत्रकारों को थानेदार ने अंदर आने से रोकते हुए बाहर जाने को कहा. पत्रकार वापस लौट गये. लेकिन फिर 10 मिनट बाद ही उन्होंने अपने अंगरक्षक से पत्रकारों को बुलावा भेजा . थानेदार के रवैये से नाराज पत्रकारों ने पहले जाने से इंकार कर दिया लेकिन बाद में भीतर गये. जहां थानेदार ने सभी पत्रकारों से कहा कि वे लोग थाने के अंदर किसी भी प्रकार का वीडियो बगैर उनके परमिशन के नहीं बनायेंगे. चूंकि इससे हमारा अनुसंधान प्रभावित होता है. इसके साथ ही उन्होंने सभी पत्रकारों के सामने अपने उतावलापन आचरण के लिए माफी भी मांगी और मामले को समाप्त करने का अनुरोध किया. पत्रकारों ने भी थानेदार की ओर से माफी मांगे जाने पर मामले को समाप्त करने का निर्णय लिया है.

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लेकिन सवाल यह है कि अगर कोई पत्रकार थाने में किसी शिकायतकर्ता का वीडियो बना रहा था तो इसमें उसकी क्या गलती थी? क्या थानेदार आलोक दुबे को पत्रकारों से दिक्कत होने लगी है? वैसे इस घटना के बाद यह भी माना जा रहा है कि  पिछले कुछ महीनों से थाना क्षेत्र में हो रहे लगातार अपराधिक घटनाओं के वजह से थानेदार आलोक दुबे की हालात खिसियाई बिल्ली खंभा नोचे जैसी बनते जा रही है। और इसी कारण से अपराधियों के साथ पत्रकारो पर भी अपनी रौब दिखाने से बाज नहीं आ रहे है।

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