148वें सृजन संवाद में ‘स्त्री कहानियों में प्रेम का बदलता स्वरूप’ पर चर्चा



जमशेदपुर –‘सृजन संवाद’ साहित्य, सिनेमा एवं कला की संस्था ने 148वीं संगोष्ठी स्ट्रीमयार्ड तथा फ़ेसबुक लाइव द्वारा विषय पर चर्चा का आयोजन किया। 23 मार्च 2025, दोपहर 3 बजे से 90 मिनट इस पर बात हुई। इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप आलोचक-कहानीकार राकेश बिहारी इलाहाबाद से उपस्थित थे। स्वागत-धन्यवाद ज्ञापन डॉ. विजय शर्मा ने दिया। कार्यक्रम का संचालन वैभव मणि त्रिपाठी ने किया।
डॉ. विजय शर्मा ने वक्ता, संचालक तथा फ़ेसबुक लाइव श्रोताओं/दर्शकों का स्वागत किया। अब तक सृजन संवाद में आलोचना के कार्यक्रम किए हैं, जिसने कई युवाओं को साहित्य की ओर आकर्षित किया है। वैभव मणि त्रिपाठी ने वक्ता का परिचय दिया। कहानी तथा कथालोचना दोनों विधाओं में समान रूप से सक्रिय राकेश बिहारी साहित्य से गहराई से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहानियाँ लिखी हैं, कहानी आलोचना केलिए उन्हें सम्मान के साथ जाना जाता है। उनकी ‘वह सपने बेचता था’, ‘गौरतलब कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह), ‘केंद्र में कहानी’, ‘भूमंडलोत्तर कहानी’ (कथालोचना) किताबें प्रकाशित हैं। कई सम्मानों से भूषित राकेश बिहारी ने कई पत्रिकाओं एवं किताबों का संपादन भी किया है।
राकेश बिहारी ने ‘स्त्री कहानियों में प्रेम का बदलता स्वरूप’ विषय पर अपनी बात सप्ष्ट करने हेतु तीन काल खंड की कहानियों का चुनाव किया। अपनी बात महिला कहानकारों पर केंद्रित करते हुए उन्होंने मुख्य रूप से तीन की कहानियाँ लीं। मृदुला गर्ग की कहानी ‘अवकाश’, नासिरा शर्मा की ‘शामी कागज’, तथा नाजिश अंसारी की ‘हराम’। इस तरह उन्होंने सत्तर के दशक से अब तक के कालखंड में कहानियों में आने वाले प्रेम के बदलते स्वरूप को विश्लेषित किया। यदि मृदुला गर्ग की नायिका मिनी मानसिक रूप से स्वयं को अभिव्यक्त करती है, तो पाशा मोहब्बत एवं हमदर्दी का अर्थ भलीभाँति जानती है। वहीं आज की सकीना हराम और हलाल की अपनी परिभाषा गढ़ती है। पहली नायिका शादीशुदा है, साथ ही दूसरे पुरुष के पास जाने का मन बना चुकी है, दूसरी का संबंध एक अन्य आदमी से है। तीसरी हैदर से प्रेम करती है और शाम को उसका निकाह किसी अन्य से होने वाला है, उसके अंदर कोई उधेड़बुन नहीं है। कहानियों के संदर्भ में राकेश बिहारी ने अब्राहम मेस्लो के आवश्यकताओं के पाँच सोपानों का जिक्र किया। उन्होंने अन्य विदेशी मनोवैज्ञानिकों का भी हवाला दिया। वक्ता ने दर्शकों के प्रश्नों का समुचित उत्तर दिया।
नतीजन, दर्शक/श्रोता को कहानियों को नई रोशनी में देखने का अवसर मिला। बातचीत के संदर्भ में डॉ. विजय शर्मा ने बताया कि अब्राहम मेस्लोन बाद में दो और सोपान – एस्थेटिक्स एवं सेल्फ़ एक्चुलाइजेशन जोड़े हैं। उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय मनोवैज्ञानिक भी भारतीय मन पर काम कर रहे हैं, उदाहरण के तौर पर सुधीर कक्कड़। भारतीय मनोविज्ञान से संबंधित अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाएँ निकल रही हैं। वक्ता इससे सहमत थे। वैभव मणि त्रिपाठी ने 90 मिनट चली वार्ता का कुशलतापूर्वक संचालन करते हुए कार्यक्रम का समापन किया।
148वें सृजन संवाद कार्यक्रम में सृजन संवाद फ़ेसबुक लाइव माध्यम से देहरादून से सिने-समीक्षक मनमोहन चड्ढा, दिल्ली से एम. के. पाण्डेय, रक्षा गीता, गरिमा श्रीवास्तव, राँची से रश्मि शर्मा, रणेंद्र, इंदौर से रवींद्र व्यास, मुंबई से विमल चंद्र पाण्डेय, जमशेदपुर से डॉ. क्षमा त्रिपाठी, गीता दूबे, बैंग्लोर से अनघा मारीषा, गोरखपुर से गौरव मणि त्रिपाठी, उमा उपाध्याय, अनुराग अंजु रंजन, गोमिया से प्रमोद कुमार बर्णवाल आदि जुड़े। इनकी टिप्पणियों से कार्यक्रम और अधिक सफ़ल हुआ।
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राकेश बिहारी ने ‘स्त्री कहानियों में प्रेम का बदलता स्वरूप’ विषय पर अपनी बात सप्ष्ट करने हेतु तीन काल खंड की कहानियों का चुनाव किया। अपनी बात महिला कहानकारों पर केंद्रित करते हुए उन्होंने मुख्य रूप से तीन की कहानियाँ लीं। मृदुला गर्ग की कहानी ‘अवकाश’, नासिरा शर्मा की ‘शामी कागज’, तथा नाजिश अंसारी की ‘हराम’। इस तरह उन्होंने सत्तर के दशक से अब तक के कालखंड में कहानियों में आने वाले प्रेम के बदलते स्वरूप को विश्लेषित किया। यदि मृदुला गर्ग की नायिका मिनी मानसिक रूप से स्वयं को अभिव्यक्त करती है, तो पाशा मोहब्बत एवं हमदर्दी का अर्थ भलीभाँति जानती है। वहीं आज की सकीना हराम और हलाल की अपनी परिभाषा गढ़ती है। पहली नायिका शादीशुदा है, साथ ही दूसरे पुरुष के पास जाने का मन बना चुकी है, दूसरी का संबंध एक अन्य आदमी से है। तीसरी हैदर से प्रेम करती है और शाम को उसका निकाह किसी अन्य से होने वाला है, उसके अंदर कोई उधेड़बुन नहीं है। कहानियों के संदर्भ में राकेश बिहारी ने अब्राहम मेस्लो के आवश्यकताओं के पाँच सोपानों का जिक्र किया। उन्होंने अन्य विदेशी मनोवैज्ञानिकों का भी हवाला दिया। वक्ता ने दर्शकों के प्रश्नों का समुचित उत्तर दिया।
नतीजन, दर्शक/श्रोता को कहानियों को नई रोशनी में देखने का अवसर मिला। बातचीत के संदर्भ में डॉ. विजय शर्मा ने बताया कि अब्राहम मेस्लोन बाद में दो और सोपान – एस्थेटिक्स एवं सेल्फ़ एक्चुलाइजेशन जोड़े हैं। उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय मनोवैज्ञानिक भी भारतीय मन पर काम कर रहे हैं, उदाहरण के तौर पर सुधीर कक्कड़। भारतीय मनोविज्ञान से संबंधित अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाएँ निकल रही हैं। वक्ता इससे सहमत थे। वैभव मणि त्रिपाठी ने 90 मिनट चली वार्ता का कुशलतापूर्वक संचालन करते हुए कार्यक्रम का समापन किया।
148वें सृजन संवाद कार्यक्रम में सृजन संवाद फ़ेसबुक लाइव माध्यम से देहरादून से सिने-समीक्षक मनमोहन चड्ढा, दिल्ली से एम. के. पाण्डेय, रक्षा गीता, गरिमा श्रीवास्तव, राँची से रश्मि शर्मा, रणेंद्र, इंदौर से रवींद्र व्यास, मुंबई से विमल चंद्र पाण्डेय, जमशेदपुर से डॉ. क्षमा त्रिपाठी, गीता दूबे, बैंग्लोर से अनघा मारीषा, गोरखपुर से गौरव मणि त्रिपाठी, उमा उपाध्याय, अनुराग अंजु रंजन, गोमिया से प्रमोद कुमार बर्णवाल आदि जुड़े। इनकी टिप्पणियों से कार्यक्रम और अधिक सफ़ल हुआ।

