CHAITRA NAVRATRI 2025 DAY 1: माँ शैलपुत्री की आराधना से मिलता है शक्ति, भक्ति और सिद्धि का वरदान…



लोक आलोक सेंट्रल डेस्क:चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ माँ शैलपुत्री की पूजा से होता है, जो नवदुर्गा का प्रथम स्वरूप हैं। इनका नाम ‘शैलपुत्री’ इसीलिए पड़ा क्योंकि वे पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं और शिवपत्नी पार्वती के रूप में पूजित होती हैं। देवी सती के रूप में उन्होंने अपने पूर्व जन्म में जब पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव का अपमान सहन न कर पाने के कारण आत्मदाह कर लिया, तब वे अगले जन्म में शैलपुत्री के रूप में प्रकट हुईं और कठोर तपस्या कर शिव को पुनः पति रूप में प्राप्त किया।

माँ शैलपुत्री का स्वरूप और प्रतीकात्मकता–
माँ शैलपुत्री वृषभ (बैल) पर सवार रहती हैं, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल सुशोभित रहता है। ये नवदुर्गा की पहली शक्ति हैं, जो साधकों को स्थिरता, दृढ़ संकल्प और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करती हैं। इनकी आराधना करने से मन और आत्मा की शुद्धि होती है और जीवन में संतुलन स्थापित होता है।
माँ शैलपुत्री की पूजा विधि और आराधना–
माँ शैलपुत्री की पूजा में विशेष रूप से श्वेत वस्त्र धारण करने की परंपरा है, क्योंकि सफेद रंग पवित्रता और शांति का प्रतीक है। उनकी पूजा में निम्नलिखित विधियां अपनाई जाती हैं:
- प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और व्रत का संकल्प लें।
- पूजा स्थल पर माँ शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- जल, अक्षत, पुष्प, दुर्वा, चंदन और रोली से उनका पूजन करें।
- विशेष भोग के रूप में गाय के घी का नैवेद्य अर्पित करें, जिससे आरोग्य और दीर्घायु का वरदान प्राप्त होता है।
- दुर्गा सप्तशती, देवी कवच और शैलपुत्री स्तोत्र का पाठ करें।
- दीप जलाकर माँ की आरती करें और अंत में प्रसाद वितरित करें।
माँ शैलपुत्री की कथा: शक्ति और समर्पण की अमर गाथा–
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, पूर्वजन्म में माँ शैलपुत्री राजा दक्ष की पुत्री सती थीं। एक बार जब दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया और उसमें भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया, तब सती बिना बुलाए ही वहाँ पहुंच गईं। यज्ञ में जब उन्होंने अपने पिता द्वारा शिव का अपमान होते देखा, तो वे इसे सहन नहीं कर सकीं और योग अग्नि द्वारा स्वयं को भस्म कर लिया। अगले जन्म में वे हिमालयराज के यहाँ शैलपुत्री के रूप में जन्मीं और घोर तपस्या कर पुनः भगवान शिव को प्राप्त किया। यह कथा शक्ति, प्रेम और तपस्या का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करती है और हमें आत्मसम्मान तथा निष्ठा का संदेश देती है।
माँ शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए अर्पित करें यह विशेष भोग–
माँ शैलपुत्री को शुद्ध और सात्विक भोजन अत्यंत प्रिय है। उनके पूजन में विशेष रूप से इन भोगों को अर्पित करने से देवी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है:
- गाय का घी – इसे अर्पित करने से आरोग्य और दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
- शकरकंद और मिश्री – इससे आर्थिक समृद्धि बढ़ती है।
- फल और सूखे मेवे – भक्तों को मानसिक शांति प्राप्त होती है।
माँ शैलपुत्री की कृपा से मिलती हैं यह विशेष सिद्धियाँ–
माँ शैलपुत्री की उपासना से साधकों को विभिन्न आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं, जैसे:
- मानसिक और शारीरिक शुद्धि
- आत्मविश्वास और दृढ़ निश्चय में वृद्धि
- जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और सफलता
शैलपुत्री पूजन का आध्यात्मिक महत्व–
नवरात्रि के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा करने से सम्पूर्ण नवरात्रि की साधना सफल होती है। यह दिन आत्मशुद्धि, संकल्प और शक्ति प्राप्त करने का है। देवी की कृपा से भक्तों को आत्मिक बल और साहस मिलता है, जिससे वे जीवन की कठिनाइयों का डटकर सामना कर सकते हैं। नवरात्रि का यह प्रथम दिवस शुभता और पवित्रता का प्रतीक है, जो भक्तों को साधना के मार्ग पर अग्रसर करता है।
जय माता दी!
