121वीं सृजन-संवाद गोष्ठी में सेरेमिक कलाकार शंपा शाह की माटी की यात्रा
जमशेदपुर: साहित्य-सिने-कला संस्था ‘सृजन-संवाद’ की 121वीं सेरेमिक कला ‘माई जर्ने इन क्ले’ पर केंद्रित रही। भोपाल अंतरराष्ट्रीय मृद कलाकार शंपा शाह ने अपनी यात्रा के अनुभव साझा किए। डॉ. विजय शर्मा ने वक्ताओं, टिप्पणीकारों, श्रोताओं-दर्शकों का स्वागत किया। सर्वप्रथम महात्मा गाँधी की पुण्य तिथि पर उन्हें स्मरण करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की गई। हिदी के प्रसिद्ध साहित्यकार जयशंकर को जन्मदिन स्मरण किया गया। आज ही हिन्दी-मलयालाम के प्रसिद्ध सिने-निर्देशक प्रियदर्शन के जन्मदिन पर उन्हें भी याद किया गया। डॉ. विजय शर्मा ने बताया कि ‘सृजन संवाद’ ने साहित्य, सिनेमा तथा विभिन्न कलाओं पर कार्यक्रम प्रत्येक माह गोष्ठी करते हुए एक दशक से ऊपर की सफ़ल यात्रा सम्पन्न की है। इसने अपनी पहचान एक गंभीर मंच के रूप में स्थापित की है।
संचालक ने स्वागत के दौरान पॉवर पॉइन्ट प्रजेंटेशन की सहायता से शंपा शाह की कला के कई नमूनों को प्रस्तुत किया। मंच का संचालन करते हुए उन्होंने कलाकार का परिचय देने केलिए मुंबई की चित्रकार अमृता सिन्हा को आमत्रित किया। अमृता सिन्हा ने अपनी सधी हुई भाषा में सेरेमिक कलाकार शंपा शाह की राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय कला प्रदर्शनियों की चर्चा की। शंपा शाह न केवल मृदा कलाकार हैं वरन वे एक बहुत सम्मानित लेखिका भी हैं। उन्होंने भारत की विभिन्न कलाओं पर लेख लिखे हैं। वे भारत भवन, भोपाल से एक लंबे समय से जुड़ी रही हैं। वे भारत भवन के अधिकारियों में शामिल रही हैं।
बातचीत के माध्यम से कार्यक्रम को आगे बढ़ते हुए संचालक ने कलाकार को अपनी जीवन यात्रा साझा करने के लिए आमंत्रित किया। प्रसिद्ध साहित्यकार रमेशचंद्र शाह तथा ज्योत्स्ना मिलन की बड़ी पुत्री शंपा शाह का बचपन कला, साहित्य-संगीत के परिवेश में पलते हुए बहुत समृद्ध रहा। वे विज्ञान की छात्रा रहते हुए सेरेमिक कला से जुड़ गई और राह बदल कर सफ़ेद मिट्टी की कलाकारी करने लगीं। अपने बचपन और किशोरावस्था को स्मरण करते हुए उन्होंने अपने कई अनुभव साझा किए। उनका पोटरी प्रशिक्षण प्रसिद्ध कलाकार पी. आर. दारोज़ की देखरेख में हुआ। उन्होंने संगीत में डिप्लोमा की उपाधि पाई। और फ़िर कला की दुनिया में खुद को समर्पित कर दिया। उनकी टी-पॉट सिरीज, भीमटेक सिरीज काफ़ी पसंद की गई है। कला के साथ वे साहित्य से भी जुड़ी हुई हैं। आजकल वे भारत के मिट्टी कलाकारों पर काम कर रही हैं। उन्होंने कई कुम्हारों के जीवन का नजदीक से अध्ययन कर उन पर लेखन किया है। उन्हें लेकर फ़िल्म भी बनी हैं, जिसमें वे सक्रिय मुद्रा में दिखाई देती हैं।
कोलकता से जयदेव दास ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम में जमशेदपुर से डॉ. मीनू रावत, डॉ. नेहा तिवारी, डॉ. विजय शर्मा, डॉ. ऋतु शुक्ला, वीणा कुमारी, कहानीकार गीता दूबे, चित्रकार वर्षा, नागपुर से वरिष्ट कहानीकार-सिने विशेषज्ञ जयशंकर, बैंगलोर से पत्रकार अनघा मारीषा, दिल्ली से न्यू डिल्ली फ़िल्म फ़ाउंडेशन के संस्थापक आशीष कुमार सिंह, रक्षा गीता, अंबाला से शाइनी शर्मा आदि ने सृजन संवाद की 121वीं गोष्ठी में भाग लिया। गूगाल मीट पर संचालित इस गोष्ठी की रिकॉर्डिंग हुई तथा सुंदर पोस्टर का प्रदर्शन किया गया। फ़रवरी माह की गोष्ठी की घोषणा के साथ कार्यक्रम सफ़लतापूर्वक समाप्त हुआ।