सरकारी निरंकुशता के कारण अखिल भारतीय ईंट उद्योग अनिष्चितकालीन हड़ताल की ओर

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रांची : ईंट उद्योग प्राचीनतम कुटीर उद्योग है। मानव सभ्यता ज्यों ज्यों विकसित होती गई समानांतर रूप से ईंट उद्योग भी फलता-फूलता रहा। आधुनिकीकरण एवं मशीनी युग में भी ईंट उद्योग परम्परागत तरीके से संचालित है। यह उद्योग मौसमी है, देश के सीमांत कृषक कृषि कार्य से निवृत होकर आजीविका हेतु क्षेत्र में स्थित ईंट भट्ठों पर कार्य करने आ जाते हैं तथा वर्षारम्भ होने के पूर्व पुनः कृषि कार्य में जुट जाते हैं। पूरे देष में इस प्रकार के श्रमिकों को कोई भी अन्य उद्योग नियोजित नहीं करता है। एकमात्र ईंट उद्योग ही स्थानीय आदिवासी एवं वंचित वर्ग हेतु लाखों श्रम दिवस का सृजन करता है।
ईंट उद्योग विकास का दर्पण है, विद्यालय, अस्पताल, सरकारी भवन, निजी आवास तथा प्रधान मंत्री एवं इंदिरा आवास जैसी कल्याणकारी योजनाओं के निर्माण की ईंटों के बिना कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
राज्य एवं केन्द्र सरकारों द्वारा देष के विकास हेतु औद्योगिक एवं प्रोत्साहन नीति की निरंतर घोषणायें की जाती है। अन्य उद्योगों को अनुदान, बीमा योजना तथा करों में छूट प्रदान की जाती है, लेकिन दुर्भाग्यवष ईंट उद्योग अतीत से अब तक सदा सरकारी सहयोग से वंचित रहा है, वरन् नित नये नये आदेष एवं नियमों तथा करों की अनुचित वृद्धि से ईंट उद्योग बंदी के कगार पहुंच गया है।
केन्द्र सरकार ने जी एस टी करों की दर में अप्रत्याशित वृद्धि हेतु पूर्व घोषित अनुसूची में भी परिवर्तन कर दिया है। लघु व्यवासियों हेतु पूर्व में निर्धारित एक प्रतिशत जी एस टी को (6) प्रतिशत कर दिया है तथा पांच प्रतिषत करों को बारह प्रतिषत कर दिया है, इस प्रकार की अनुचित वृद्धि से ईंट उद्योग की कमर टूट गई है।
ईंट उद्योग में कोयला एक मूल पदार्थ है जिसका मूल्य लगभग तीन गुणा बढ़ गया है। बढ़े मूल्य पर कोयला खरीद कर ईंटों का उत्पादन असंभव हो गया है।
राज्य सरकारों ने पिछले कई वर्षों से बालू घाटों की बन्दोबस्ती नहीं की है जिससे निर्माण कार्य पूरे प्रदेष में बंद हो गया है तथा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से संलग्न लाखों श्रमिक बेरोजगार हो गये हैं तथा इसका कुप्रभाव ईंट उद्योग पर भी पड़ा है।
खनन कार्य दो पद्धति से संचालित होता है, एक स्थायी रूप से खनन पट्टा एवं दूसरे अस्थायी अनुज्ञा के द्वारा किया जाता है। ईंट उद्योग मौसमी होने के कारण अस्थायी अनुज्ञा के द्वारा ही संचालित होता है। वर्ष 2012 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने खनन पट्टों हेतु पर्यावरणीय स्वीकृति (EC) अनिवार्य कर दी थी लेकिन केन्द्र सरकार ने उक्त आदेष की गलत व्यवस्था कर इसे ईंट उद्योग पर भी थोप दिया था। कालांतर में प्रबल विरोध के कारण त्रुटि का निराकरण करके केन्द्र सरकार ने पर्यावरणीय स्वीकृति हेतु छूट प्रदान करने के लिए राज्य सरकारों को अधिकृत कर दिया। तदनुसार कई राज्यों ने ईंट उद्योग को पर्यावरणीय स्वीकृति से छूट प्रदान कर दी लेकिन झारखण्ड सरकार ने विधान सभा में मामले को उठाने के बावजूद आज तक ईंट उद्योग को यह छूट नहीं दी है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के एक सर्कुलर के अनुसार Zig Zag भट्ठे के निर्माण करने वाले को ही संचालन सहमति (CTO) निर्गत करने का निर्देष राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद को दिया है। ईंट निर्माताओं का कहना है कि पद्धति परिवर्तन पूर्व की भांति पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की अधिसूचना से ही संभव है। अब ईंट उद्योग की मांग पर MOEF & CC के द्वारा 22.02.22 को अधिसूचना निर्गत करके Zig Zag भट्ठे के निर्माण के लिये वर्षों का अवधि विस्तार करने के बावजूद राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद CTO निर्गत नहीं कर रहा है।
इस प्रकार के सरकारी उत्पीड़न से त्रस्त होकर अखिल भारतीय ईंट एवं टाईल्स फेडरेषन के आवाहन पर पूरे देष के ईंट भट्ठे अनिष्चित काल के लिए हड़ताल पर जा रहे हैं। इसका परिणाम भयंकर होगा समूचा विकास एवं निर्माण बंद हो जायेगा तथा करोड़ों श्रमिक बेरोजगार हो जायेगे तथा बेरोजगारी के फलस्वरूप कानून व्यवस्था की स्थिति भी खराब होगी।आज के इस प्रेस कांफ्रेंस में मुख्य रूप से राजन सिंह, संजय कुमार, शिवचरण गौड़, रामावतार सिंह, अतिकुर रहमान, अमिताभ सेन,बंकिम चौधरी आदि उपस्थित थें।

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