आखिर दो दिन क्यों मनाई जाती है कृष्णा जन्माष्टमी??? इस वर्ष कब मनाया जायेगा….देखे रिपोर्ट…

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धर्म:- कृष्णा जन्माष्टमी को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं। लेकिन, जन्मोत्सव मनाने की तैयारी कहीं 6, तो कहीं 7 सितंबर के लिए हो रही। ऐसे में सवाल उठता है कि जब सभी लोग इस बात पर एकमत हैं कि ठाकुरजी का जन्म भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था, तो जन्माष्टमी अलग-अलग दिन क्यों मनाते हैं? गृहस्थ इस बार 6 सितंबर, जबकि वैष्णव यानी संत 7 सितंबर को जन्माष्टमी मना रहे।

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भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की क्या कहानी है?

शास्त्रों के अनुसार गृहस्थ और संत अलग-अलग जन्माष्टमी मनाते हैं, इसे समझने के लिए हमें पहले कृष्ण जन्म की कहानी जाननी होगी। द्वापर युग में मथुरा में भोजवंशी राजा उग्रसेन का शासन था। लेकिन, उनका पुत्र कंस उन्हें बलपूर्वक गद्दी से उतारकर ख़ुद राजा बन गया। कंस की एक बहन थीं देवकी, जिनका विवाह वसुदेव से हुआ था। विवाह के बाद कंस अपनी बहन देवकी को उनकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था।

रास्ते में आकाशवाणी हुई, ‘हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।’ यह सुनकर कंस ने रथ रोक दिया और वसुदेव-देवकी को मारना चाहा। तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा, ‘मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। हमको मार के क्या लाभ मिलेगा?’ कंस ने देवकी की बात मान ली और वसुदेव-देवकी को कारागार में डाल दिया।

वसुदेव-देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए। कंस ने सभी को पैदा होते ही मार डाला। जब आठवां बच्चा होने वाला था, कारागार में पहरे कड़े कर दिए गए। ठीक इसी समय गोकुल में नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था। एक ही समय पर देवकी को पुत्र और यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ। वह कन्या कुछ और नहीं सिर्फ माया थी। देवकी-वसुदेव परेशान थे कि अब कंस आएगा और उनकी आठवीं संतान को भी मार डालेगा।

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लेकिन, तभी जेल की कोठरी में अचानक प्रकाश फैल गया। वसुदेव-देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए। भगवान ने कहा, ‘तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंद के घर वृंदावन ले चलो और उनके वहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस को सौंप दो। तुम चिंता मत करो। पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक खुल जाएंगे और उफनती यमुना तुमको पार जाने के लिए रास्ता दे देगी।’

अपने आठवें पुत्र के रूप में स्वयं भगवान को देख दोनों बहुत प्रसन्न हुए। तुरंत ही वसुदेव ने नवजात शिशु को सूप में रखा और कारागृह से निकल पड़े। वह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। वहां उन्होंने शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और वहां से कन्या को लेकर मथुरा आ गए। कुछ ही देर में कंस को सूचना मिली कि देवकी को आठवां बच्चा हुआ है तो वह बंदीगृह पहुंचा। वहां उसने देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, लेकिन वह उसके हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई।

कन्या ने कहा, ‘अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारने वाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है। वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा।’ सुबह गोकुलवासियों और साधु-संतों को इस बात का पता चला कि भगवान का जन्म हो चुका है, तब सभी ने मिलकर गोकुल में भगवान का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया।

स्मार्त और वैष्णव कृष्ण के ही भक्त, फिर अलग कैसे?

कृष्ण की कहानी जानने के बाद आइए समझते हैं कि स्मार्त और वैष्णव क्या हैं? सनातन धर्म में कई तरह के मतों को मानने वाले हैं। इन अनुयायियों को उनकी भक्ति, विश्वास और पूजा विधि के हिसाब से वैष्णव, शैव, शाक्त, स्मार्त और वैदिक के रूप में जाना जाता है। वैष्णव वे हैं, जो भगवान विष्णु को ही सबसे बड़ा देव मानते हैं। शैव शिव को ही परम सत्ता मानते हैं। वहीं, शाक्त, देवी को परम शक्ति मानते हैं। स्मार्त वे हैं, जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं और सभी देवी-देवताओं की समान रूप से पूजा करते हैं।

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गृहस्थ भी स्मार्त ही हैं, क्योंकि वे भी सभी देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। भगवान कृष्ण को वैष्णव और स्मार्त समान रूप से मानते हैं, लेकिन जन्माष्टमी मनाने को लेकर दोनों अलग-अलग दिन का चुनाव करते हैं। इसका रहस्य भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की कहानी में छिपा है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद की अष्टमी तिथि को रोहणी नक्षत्र में, आठवें मुहूर्त में रात्रि के 12 बजे, यानी शून्यकाल में हुआ था। यानी, अष्टमी तिथि के आठवें मुहूर्त में रोहणी नक्षत्र में ही जन्माष्टमी मनाई जानी चाहिए। इस बार गृहस्थ 6 सितंबर को, जबकि संत 7 सितंबर को जन्माष्टमी मनाएंगे।

पंडित बताते हैं कि गृहस्थ और संत के अलग-अलग दिन जन्माष्टमी मनाने के कारणों को और अधिक स्पष्ट करते हुए कहते हैं, भगवान कृष्ण का जन्म विकट परिस्थितियों में हुआ था। कंस मां देवकी की सभी संतानों को नष्ट करता जा रहा था। जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। प्रजा चाहती थी कि कंस के अत्याचारों का अंत हो। इसके लिए सभी भगवान कृष्ण के अवतार लेने की प्रतीक्षा कर रहे थे, लेकिन यह डर भी था कि कहीं कंस आठवीं संतान को भी ना मार डाले।

ऐसे में जिस दिन कृष्ण का जन्म होना था, स्मार्त यानी गृहस्थ लोगों ने व्रत रखा और भगवान से ही भगवान की रक्षा की कामना की। इसके बाद मध्य रात्रि में जन्म भगवान ने जन्म ले लिया, तभी उन्होंने भोजन किया। इसलिए स्मार्त लोग कृष्ण जन्माष्टमी उसी दिन मनाते हैं, जिस दिन रात्रि में अष्टमी होती है। वहीं, वैष्णव, यानी संत समाज कंस के अत्याचारों के कारण गोकुल और अन्य स्थानों पर जाकर रह रहा था। भगवान कृष्ण के जन्म के बाद वह रात में ही गोकुल पहुंच गए, लेकिन इसकी जानकारी गोकुलवासियों और अन्य संत समाज को सुबह हुई।

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जब पता चला कि भगवान सकुशल हैं तो सभी वैष्णवों और गोकुलवासियों ने भगवान का प्राकट्योत्सव मनाया। आज भी यही परंपरा कायम है। सूर्य उदय के समय जब अष्टमी तिथि होती है, उस दिन वैष्णव जन्माष्टमी मनाते हैं। सीधी तरह से समझें तो भगवान का जन्म आधी रात को हुआ था। इस समय से पहले से ही गृहस्थ उनका जन्मदिन मनाते हैं। वहीं भगवान के आधी रात को प्रकट होने के बाद अगले दिन वैष्णव उनका जन्मोत्सव मनाते हैं।

International Society for Krishna Consciousness- ISKCON (इस्कॉन) कृष्ण को मानने वाली बड़ी संस्था है। इस्कॉन के लोग भी वैष्णव मत में आते हैं। इस्कॉन के राष्ट्रीय संपर्क निदेशक वृजेंद्र नंदन दास ने बताया कि वे लोग जन्माष्टमी 7 सितंबर को मनाएंगे। इसका मतलब स्मार्त यानी गृहस्थ लोगों की जन्माष्टमी एक दिन पहले यानी 6 सितंबर को रहेगी।

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