बिक्रमगंज अंचल कार्यालय बना उम्मीदों का कब्रिस्तान, फाइलें थक गई, अधिकारी बदल गए लेकिन काम अब भी अटका है…
रोहतास/ बिक्रमगंज:- बिक्रमगंज अंचल कार्यालय ने अपनी सुस्त रफ्तार से पूरे क्षेत्र में एक नई पहचान बना ली है। ऑनलाइन जमाबंदी की प्रक्रिया, जिसे तकनीकी क्रांति का हिस्सा माना जा रहा था, दो सालों से अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पाई है। जनता, जो शुरुआती दिनों में इस डिजिटल प्रयास से आशान्वित थी, अब निराशा और कटाक्ष के सिवाय कुछ नहीं कर पा रही।
ऑनलाइन प्रक्रिया का सपना लिए जनता यह सोचती थी कि अब काम फटाफट होगा। लेकिन इस दफ्तर में फाइलें मानो किसी होटल में चाय-पानी का आनंद लेने आती हैं। उन्हें कंप्यूटर तक पहुंचाने में कर्मचारियों का आलस्य और व्यवस्था की जटिलता ऐसी है कि फाइलें महीनों तक अपनी जगह से नहीं हिलतीं।
ऑफिस की यह कछुआ चाल ऐसी है कि “ऑनलाइन” शब्द भी यहां अपना अर्थ खोता दिखता है। जनता अब कहने लगी है, “ऑनलाइन जमाबंदी के नाम पर यहां सिर्फ बोर्ड लगाए गए हैं, जबकि काम ऑफलाइन आलस्य पर आधारित है।”
अधिकारियों का आना-जाना: एक रस्म बन चुकी है
पिछले कई सालों में कई अंचल अधिकारी बदले गए। हर नया अधिकारी आता है, बड़े-बड़े वादे करता है, “जल्द सब ठीक हो जाएगा,” और जाते-जाते वही पुराना बहाना छोड़ जाता है, “सिस्टम में कुछ दिक्कत है।”
अधिकारियों का यह आना-जाना जनता के लिए एक नई ट्रेजेडी बन चुका है। लोग मजाक में कहते हैं, “यहां अधिकारी बदलते हैं, लेकिन दफ्तर की चाल और जनता की किस्मत कभी नहीं बदलती।”
इस दफ्तर के चक्कर लगाते-लगाते जनता का धैर्य जवाब दे चुका है। हर बार वही बहाने और वही वादे। “काम चल रहा है” और “जल्दी पूरा होगा” जैसे संवाद अब जनता के लिए किसी पुराने रेडियो की रुक-रुक कर बजती धुन बन गए हैं। दफ्तर की धीमी गति को देखकर जनता अब व्यंग्य करती है कि “शायद कछुआ भी यहां से निकलने की सोचे, तो अपनी रफ्तार तेज कर ले।”
यह दफ्तर नतीजे देने में भले ही सुस्त हो, लेकिन सांत्वना देने में इसके अधिकारी और कर्मचारी माहिर हैं। हर बार जनता को समझाया जाता है, “थोड़ा और धैर्य रखिए,” लेकिन यह धैर्य आखिर कब तक रखा जाए, इसका कोई जवाब नहीं है। अगर सांत्वना देने की कोई प्रतियोगिता होती, तो विक्रमगंज अंचल कार्यालय के अधिकारी निश्चित रूप से स्वर्ण पदक जीत जाते।
बिक्रमगंज अंचल कार्यालय अब जनता की उम्मीदों का कब्रिस्तान बन गया है। फाइलें आराम कर रही हैं, अधिकारी कुर्सियों पर बैठे-बैठे थक रहे हैं, और जनता हर दिन अपनी शिकायतों का वजन बढ़ा रही है।
अब जनता की तरफ से एक ही मांग है—सरकार या तो इस सुस्त व्यवस्था में सुधार करे या फिर दफ्तर में ऐसी तकनीक और कर्मठ अधिकारी भेजे, जो फाइलों को भी दौड़ाना जानें और जनता को नतीजे भी दें। वरना वो दिन दूर नहीं जब जनता खुद अपनी फाइलें लेकर कंप्यूटर पर बैठ जाएगी और दफ्तर वालों से कहेगी, “आपसे न हो पाएगा!”
लोक आलोक न्यूज ने अपनी पड़ताल में अंचल कार्यालय की और भी कई खामियां पाई। अगले अंक में बताएंगे बिक्रमगंज अंचल कार्यालय की और भी रोचक कहानी।