Jharkhand: झारखंड राज्य में मजबूत किलेबंदी से I.N.D.I.A को मिली दूसरा मौका, भाजपा को नुकसान की 5 बड़ी वजह… जानें यहां…
लोक आलोक न्यूज सेंट्रल डेस्क:लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन की बेहतर किलेबंदी से भाजपा को झारखंड में बड़ा नुकसान हुआ है। चुनावी परिणाम के बाद लोकसभा में गठबंधन की सीटें बढ़ीं हैं तो वहीं वोट प्रतिशत भी बढ़ा है। पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से आदिवासी समाज के अंदर की नाराजगी और अल्पसंख्यक समाज को अपने पाले में करने में झामुमो-कांग्रेस की रणनीति भी काफी सफल हुई।
जानें कौन–कौन से है बड़े नुकसान:–
•अनुसूचित जनजाति सीटों पर आदिवासी समाज की नाराजगी को भी भुनाने में इंडिया गठबंधन काफी सफल रहा। गठबंधन के नेता इस बात का प्रमुखता से प्रचार करते दिखे कि आदिवासी बेटे हेमंत सोरेन को केंद्र की मोदी सरकार ने एक साजिश के तहत गिरफ्तार किया। अगर भाजपा सत्ता में आ जाएगी तो आरक्षण खत्म कर दिया जाएगा। आदिवासी समाज से आने वाले विपक्षी उम्मीदवारों की छवि को भी जनता के समक्ष नकारात्मक रूप से पेश करने में गठबंधन सफल रहा। हो जनजाति बहुल सिंहभूम सीट पर इसका सबसे बड़ा फायदा मिला। निर्दलीय चुनाव लड़ रहे चमरा लिंडा और राजमहल से लोबिन हेम्ब्रेम पर चुनाव से पहले ही कड़ी कार्रवाई कर झामुमो ने कार्यकर्ताओं को एक साफ संदेश दिया कि पार्टी का साथ नहीं देने वालों को बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा।
•झामुमो-कांग्रेस ने सूझबूझ से टिकट का बंटवारा किया। विशेषकर एसटी आरक्षित सीटों पर अनुभवी नेताओं को उतारा। झामुमो ने राजमहल सीट से दो बार के सांसद विजय हांसदा, दुमका से 6 बार के विधायक नलिन सोरेन, सिंहभूम से पांच बार की विधायक जोबा मांझी पर दांव खेला। वहीं, कांग्रेस ने खूंटी से बेहतर छवि रखने वाले काली चरण मुंडा और लोहरदगा से विधायक रह चुके सुखदेव भगत को मैदान में उतारा।
•झारखंड के गठन के बाद ऐसा पहली बार हुआ है, जब संसद के दोनों सदन राज्यसभा और लोकसभा में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) का बराबर-बराबर प्रतिनिधित्व हो गया है। चुनाव में जीत कर जोबा मांझी, नलिन सोरेन और विजय हांसदा लोकसभा पहुंचे हैं। जबकि पहले से ही राज्यसभा में शिबू सोरेन, महुआ माजी और डॉ. सरफराज अहमद मौजूद हैं।
•लोकसभा चुनाव परिणाम ने नवंबर-दिसंबर में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के लिए इंडिया गठबंधन के लिए संजीवनी का काम किया। विशेषकर अनुसूचित जनजाति आरक्षित सीटों पर भाजपा को तगड़ा नुकसान झेलना पड़ा है। राज्य की पांच एसटी आरक्षित सीटों के अंतर्गत आने वाली 24 आरक्षित विधानसभा सीटों पर भी झामुमो-कांग्रेस 2019 की तुलना में और भी मजबूत हुई है। 2019 के मुकाबले 2024 में भाजपा को दुमका, लोहरदगा और खूंटी संसदीय सीटों पर भी हार का सामना करना पड़ा। इससे भाजपा का वोट प्रतिशत भी कम हुआ।
•इस चुनाव में सामाजिक ध्रुवीकरण का नहीं होना इंडिया गठबंधन के लिए काफी फायदेमंद रहा। सभी अनुसूचित जनजाति आरक्षित सीटों पर मुस्लिम और आदिवासी मतदातों ने बिना भटके इंडिया गठबंधन के पक्ष में मतदान किया। दुमका में करीब 58, राजमहल में करीब 65, लोहरदगा में करीब 78, खूंटी में करीब 74 और सिंहभूम में करीब 67 आदिवासी-अल्पसंख्यक मतदाता हैं। इनकी एक बड़ी आबादी ने इंडिया गठबंधन के पक्ष में वोट किया। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम उम्मीदवार पर भी मुस्लिम मतदाताओं ने भरोसा नहीं जताया। राजमहल संसदीय सीट से उतरे एआईएमआईएम उम्मीदवार पॉल सोरेन अपनी जमानत तक नहीं बचा सके। इन्हें नोटा से भी काफी कम वोट मिला।