क्या है रसोई घर में रहने की कहानी? इन 4 शर्तों के साथ अयोध्या छोड़ आए थे राम, यहां सलामी देती है पुलिस…..

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लोक आलोक न्यूज सेंट्रल डेस्क:-बुंदेलखंड के लोग खुशी के पावन अवसरों पर राम राजा सरकार का जयकारा लगाते हैं. इन जयकारों के साथ यह दावा भी करते हैं कि यहां के राजा और सरकार दोनो राम हैं. इन दावों को बल भी मिलता हैं जब पुलिस सुबह शाम राम राजा को सलामी देती है. हम बात कर रहे हैं बुंदेला राजाओं की राजधानी रही ओरछा की, जहां राम रसोई घर में विराजे हैं. आइए जानते हैं ओरछा की कहानी

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ओरछा, प्रदेश के निवाड़ी जिले में आता है. बेतवा नदी के तट पर बसा यह धाम टीकमगढ़ से 80 KM और झांसी से 15 KM की दूरी पर है. टीकमगढ़, निवाड़ी और झांसी से बस पकड़कर आप यहां पहुंच सकते हैं.इतिहासकारों की माने तो 1531 में बुंदेला सरादार रुद्र प्रताप सिंह ने ओरछा की स्थापना की थी. सरदार बाद में ओरछा के पहले राजा भी बने. ओरछा किला भी उनका बनवाया हुआ है.

मुगल सम्राट औरंगजेब ने सेना के साथ 4 अक्टूबर 1635 में ओरछा की घेराबंदी कर इस बुंदेली राजधानी पर कब्जा कर लिया था. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि ओरछा के तत्कालीन राजा झुझार सिंह के नेतृत्व में बुंदेला राजपूत विद्रोह कर रहे थे. औरंगजेब ने जहांगीर महल की सबसे ऊंची छत पर मुगल झंडा को लहरा कर फिर से मुगलिया आधिपत्य का संदेश दिया.

भगवान राम को ओरछा का राजा माना जाता है. क्षेत्रीय लोगों की माने तो अयोध्या के बाद ओरछा भारत ही ऐसा स्थान है, जहां भगवान राम नगरी के राजा हैं. ओरछा दुनिया का इकलौती ऐसा मंदिर है, जहां राम रसोई घर में विराजे हैं.प्रचलित कहानियों के अनुसार ओरछा के राजा मधुकर शाह भगवान कृष्ण के भक्त थे, जबकि उनकी पत्नी रानी कुंवर गणेश भगवान राम की भक्त थीं. एक बार राजा ने रानी को चुनौती दी कि यदि राम वास्तव में हैं तो उन्हें ओरछा ले आए.

रानी अयोध्या गईं और 21 दिनों तक कठोर तपस्या करते हुए भगवान राम की पूजा की. अंत में राम अपने बाल रूप में उनके सामने प्रकट हुए और चार शर्तों के साथ उनके साथ जाने को तैयार हो गए.

पहली शर्त कि वे ओरछा के एकमात्र राजा होंगे, कोई दूसरा राजा नहीं होगा. दूसरी कि उन्हें एक बार जहां भी रखा जाएगा, वे वहीं रहेंगे. तीसरी शर्त थी कि वे सिर्फ़ पुख्य नक्षत्र में ही चलेंगे और पैदल ही यात्रा करेंगे. रानी ने शर्तें स्वीकार कर लीं और राम को प्रतीमा में ओरछा लाया गया.

राम, रानी के साथ ओरछा पहुंच गए. राजा जिस महल को बनवा रहा था वो अधूरा था और रात भी हो गई थी. ऐसे में रानी ने जो श्रीराम को अपनी गोदी में लेकर आयी थीं, उन्होंने भगवान राम को अपनी रसोई में बैठा दिया.

जब राजा और रानी ने भगवान राम से मंदिर में चलने के लिए कहा तो भगवान ने उसे मना कर दिया. उन्होंने दोनों को अपनी शर्त याद दिलाई और कहा कि वे जहां बैठ गये, अब वहीं रहेंगे.

राजा मधुकर शाह ने भगवान राम को राजा बना दिया और पूरा राजपाट उनके चरणों में सौंप दिया. तब से ही ओरछा में विराजमान भगवान राम को भगवान राजा राम सरकार के रूप में पूजा जाता है. राजा को पहली सलामी दिए जाने का रिवाज आज भी कायम है. रामराजा सरकार पर पुलिस बल के जवान सुबह शाम सलामी लगाते हैं और शाम की सलामी के बाद राम अयोध्या वापिस लौट जाते हैं.

 

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