सिदगोड़ा सूर्य मंदिर में सात दिवसीय दिव्य दार्शनिक प्रवचन एवं संकीर्तन में पशुपतिनाथ जी नेपाल से पधारे पूज्य स्वामी श्री रामदास जी ने पांचवे दिन किया प्रवचन, बताया- भगवान को हम कर्म, ज्ञान एवं योग के द्वारा प्राप्त नहीं कर सकते
जमशेदपुर:- सिदगोड़ा स्थित सूर्य मंदिर में घनश्याम कृपालु धाम वृंदावन एवं जमशेदपुर सूर्य मंदिर समिति के संयुक्त सौजन्य से सात दिवसीय दिव्य दार्शनिक प्रवचन एवं संकीर्तन के पांचवे दिन पशुपतिनाथ जी नेपाल से आए हुए पूज्य स्वामी श्री रामदासजी ने भगवान को हम कर्म, ज्ञान एवं योग के द्वारा प्राप्त नहीं कर सकते विषय पर मार्गदर्शन किया। उन्होंने बताया कि वेद-शास्त्र कहते हैं कि केवल भक्ति से ही भगवान मिलेंगे। भगवान को पाने के लिए जो साधना करनी होगी उसे साधन-भक्ति कहते हैं। साधन भक्ति मन को ही करनी है क्योंकि बंधन और मोक्ष का कारण केवल मन ही है। अतः सबसे पहले भगवान का ध्यान करना होगा। बिना भगवान का ध्यान किये हुए जो साधना की जाती है, वह साधना बिना प्राण के शरीर के समान है।
अब प्रश्न उठता है कि भगवान को देखा ही नहीं तो कैसा स्वरूप बनाएं? तो शास्त्र कहते हैं कि जैसी रुचि हो हम भगवान के वैसे ही स्वरूप का ध्यान कर सकते हैं। अतः मन को जैसा भाए वैसा रूप बना कर भगवान को अपने सामने बिठा कर हम साधना कर सकते हैं। भगवान में मन लगा
रहे, उसके लिए हम मन से ही भगवान का श्रृंगार भी कर सकते हैं। ध्यान के साथ में भगवान के नाम, गुण, लीला आदि का कीर्तन भी करना चाहिए और भगवान के दर्शन के लिए परम व्याकुलता बढ़ानी चाहिए। रो कर उनसे उनका प्रेम एवं दर्शन मांगना है । अत्यंत व्याकुल होकर करुण क्रंदन करते हुए जब उनके दर्शन के लिए एक पल भी कल्प के समान लगे तो उस अवस्था में पहुँच कर भगवान हमको अवश्य मिल जाएंगे, क्योंकि गीता में उन्होंने कहा है- जितना जीव भगवान से प्रेम करता है, भगवान भी जीव से उतना ही प्रेम करते हैं। वे प्रेम के बस में हैं। हमारे गुण-दोषों को नहीं देखते हैं।
जब हम साधना करते हैं तो साधना करते समय मन संसार में जाता है। उस समय संसार से मन को हटा कर भगवान में लगाना चाहिए। संसार से मन को हटा करके हम भगवान से कैसे लगा सकते हैं? साधन भक्ति का यह अंतरंग रहस्य स्वामीजी कल शनिवार के प्रवचन में बताएंगे।