तीन दशक पहले की दुष्कर्म और ब्लैकमेलिंग की कहानी है ‘अजमेर 92’, स्कूली छात्राओं का न्यूड फोटो लेकर किया गया था ब्लैकमेल… पत्रकार की कलम ने दिया था समाज को ताकत…

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एंटरटेनमेंट / फिल्म :- ‘Ajmer- 92’ सच्ची घटना पर आधारित वह फिल्म है जो आज से 33 साल पहले घटी थी. 300 से भी ज्यादा स्कूली छात्राओं और लड़कियों के साथ दुष्कर्म किया गया था. मामले में कई जेल गये और दोषी साबित होने के बाद भी छूट गये. मामला अब भी चल रहा है, लेकिन सभी आरोपी बाहर आ गये हैं. फिल्म ‘Ajmer- 92’ अभी रिलिज भी नहीं हुई है और उसके पहले ही बवंडर खड़ा होने लगा है. इसका विरोध खादिम समुदाय और मुस्लिम समाज कर रहा है. इसके पहले जब ‘कश्मीर फाइल्स’ और ‘द केरेला स्टोरी’ बनी थी तब भी बवंडर खड़ा कर फिल्म को रूकवाने का प्रयास किया गया था. इस बार भी कुछ वैसा ही बवंडर खड़ा किया जा रहा है.

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स्कूली छात्राओं का न्यूड फोटो लेकर किया गया था ब्लैकमेल


फिल्म ‘Ajmer- 92’ एक सच्ची घटना पर आधारित 1990 से लेकर 1992 के बीच की कहानी है. तब स्कूली छात्राओं को फांसकर उसका न्यूड फोटो ले लिया गया था. इसके बाद फोटो दिखाकर उसे ब्लैकमेल किया जाने लगा. उसके बाद छात्राओं का यौन शोषण किया गया था. घटना की जानकारी जब पुलिस को दी गयी, तब पुलिस ने मामले में कार्रवाई करने के बजाये आरोपियों पर पर्दा डालने और मामले को ठंडे बस्ते में डालने का काम किया था.


पत्रकार की कलम ने दी थी समाज को ताकत


1990-1992 के कालक्रम के दौरान कोई पत्रकार घटनाक्रम का खुलासा तक नहीं करते थे, तब ही एक पत्रकार ने अखबार में खबर प्रकाशित कर लोगों को झकझोर कर रख दिया था. पत्रकार ने खबर में लिखा था कि स्कूली छात्राओं का न्यूड फोटो लेकर ब्लैकमेल करने और उसका यौन शोषण किये जाने का पर्दाफाश किया था. बड़े घर की बेटियां भी शिकार हुयी थी. खबर छपने के बाद तब भूचाल आ गया था. नेता, पुलिस, सरकार सभी लोग जानना चाह रहे थे कि कौन है इसके पीछे.


17 से 20 साल की लड़कियों को बनाते थे शिकार


तब 17 से 20 साल की लड़कियों को फांसने के बाद शिकार बनाया जाता था. न्यूड फोटो खींचकर ब्लैकमेल कर यौन शोषण किया जाता था. इसमें कई आरोपी राजनीतिक दल से भी जुड़े हुये थे. सूचना के बाद भी पुलिस आरोपियों पर हाथ डालने से कतराती थी.


सीएम भैरोसिंह शेखावत ने कहा था कार्रवाई करो


जब सीएम भैरोसिंह शेखावत हुआ करते थे. उनतक मामला पहुंचने पर उन्होंने साफ कह दिया था कि कार्रवाई करो. बावजूद जिला और पुलिस प्रशासन मामले को ठंडे बस्ते में डालने में जुटा हुआ था. सीएम के आदेश के एक पखवाड़ा बीतने के बाद भी जब जिला और पुलिस प्रशासन की ओर से कार्रवाई नहीं की गयी तब पत्रकार ने खबर लगायी कि छात्राओं को ब्लैकमेल करनेवाले आजाद कैसे रह गये. खबर के साथ फोटो भी अखबारों में प्रकाशित की गयी थी. इसके बाद पूरे राजस्थान में ही जैसे आग लग गयी थी.


आंदोलन के लिये सड़क पर उतर गये थे लोग


इसके बाद तो राजस्थान के लोग आंदोलन के लिये जैसे सड़क पर ही उतर गये थे. अजमेर बंद की भी घोषणा कर दी गयी थी. तब स्कूली छात्राओं के साथ यौन शोषण का सारा खेल शहर में ही सुनियोजित तरीके से मुस्लिम समुदाय के प्रभावशाली युवाओं की ओर से हिन्दू लड़कियों के साथ किया जा रहा था. इसके विरोध में बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद, शिवसेना आदि संगठन के लोग भी आंदोलन के लिये उतर गये थे.


1992 में दर्ज हुआ मामला


सीएम के आदेश के बाद 30 मार्च 1992 मे आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया. जांच का जिम्मा सीआइडी सीबी को सौंपी गयी थी. तब तत्कालीन उप-अधीक्षक हरिप्रसाद शर्मा ने मामला दर्ज किया था. जाच रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि छात्राओं के अश्लील फोटो खींचकर ब्लैकमेल कर यौन शोषण किया गया. खुलासा हुआ कि घटना में राजनीतिक के साथ-साथ धार्मिक और सामाजिक लोग भी शामिल हैं.

जांच में युवा कांग्रेस के शहर के अध्यक्ष और दरगाह के खादिम चिश्ती परिवार के फारूक चिश्ती, उपाध्यक्ष नफीस चिश्ती, अनवर चिश्ती, अलमास महाराज, इशरत अली, इकबाल खान, सलीम, जमीन, सोहेल गनी, पुत्तन इलाहाबादी, नसीम अहमद, परवेज अंसारी, मोहिबुल्लाह, कैलाश सोनीर, महेश लुधानी, पुरूषोत्तम उर्फ जॉन बेसली, हरीश आदि के नाम सामने आये थे. जांच के दौरान कई छात्राओं ने आत्महत्या कर ली थी. अचानक एक के बाद एक करके दर्जन भर से ज्यादा लड़कियों ने सुसाइड कर लिया था. उनकी ममद करने न तो समाज आया सामने और न ही परिवार के लोग. घटना में 16 से 17 आरोपियों की पहचान की गयी थी. इसमें से सिर्फ अलमास महाराज को ही गिरफ्तार नहीं किया जा सका था.

घटना की ताजा हालात की बात करें तो पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, फास्ट ट्रैक कोर्ट और पॉक्सो कोर्ट के बीच ही झूलता रहा. मामले में 17 लड़कियों ने 164 के तहत बयान दिया था. 1998 में अजमेऱ की कोर्ट ने 8 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनायी थी. इसके बाद राजस्थान हाईकोर्ट ने 2001 में 4 को बरी कर दिया. सुप्रीम कोर्ट तक मामला जाने के बाद चार की सजा को 10 साल कर दिया गया. इसमें शमशुद्दीन उर्फ माराडोना, मोइजुल्ला उर्फ पुत्तन इलाहाबादी, अनवर चिश्ती और इशरत शामिल था. 2013 में फारूख चिश्ती की आजीवन कारावाज की सजा को खत्म कर दिया था. 2012 में सरेंडर करनेवाला सलीम 2018 तक जेल में रहा. उसके बाद जमानत मिल गयी थी.

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