लॉक डाउन के बीच दिया गया डूबते सूर्य को अर्घ्य…व्रतियों ने मनाया छठ…
जमशेदपुर : चैत्र मास का चार दिवसीय चैती छठ व्रत का आज तीसरा दिन है और व्रती आज अस्त होते सूर्य देव को अर्घ्य देकर इस पर्व को मनाया। छठ व्रत में आज के दिन का खास महत्व है। षष्ठी तिथि के कारण ही इस व्रत को छठ कहा जाता है। दिन भर अन्न-जल ग्रहण किए बिना व्रती ने ढलते हुए सूरज की पूजा की। इस वर्ष लॉक डाउन के कारण व्रती नदी, सरोवर पर नहीं जा सकें। ऐसे में घर की घत पर, आंगन में जल इकट्ठा कर या टब में जल भरकर भी छठी मैय्या की पूजा करेंगे। पूजा में मुख्य रूप से जल को साक्षी स्वरूप मानकर उसमें प्रवेश करके सूर्य देव की पूजा का विधान है। ऐसी कथा प्रचलित है कि चैत शुक्ल षष्ठी तिथि को भगवान श्रीराम ने भी अपने कुल देवता सूर्य की पूजा जल में प्रवेश करके की थी।
छठ व्रत में नियम और संयम पालन का विशेष महत्व है। व्रती को ब्रह्मचर्य का पूरा पालन करना होता है। व्रत के दौरान भूमि पर सोना होता है। छठी मैय्या के प्रसाद को शुद्धता से तैयार करके उन्हें सूर्य देव को अर्घ्य देना होता है। दरअसल सूर्य देव और षष्ठी माता के बीच भाई-बहन का नाता है इसलिए छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार छठ मैय्या सृष्टि कर्ता ब्रह्माजी की मानस पुत्री हैं। सूर्य देव इनके भाई हैं। ऐसी कथा है कि ब्रह्माजी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया, जिसमें दाहिने भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया।सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक अंश को देवसेना के नाम से जाना जाता है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इस देवी का एक प्रचलित नाम षष्ठी हुआ, इन्हें ही श्रद्धालु छठ मैय्या के नाम से जानते हैं। यह देवी संतान सुख प्रदान करती हैं और उनकी रक्षा करती हैं।
सूर्य षष्ठी व्रत में अर्घ्य का सबसे अधिक महत्व है इसके लिए व्रती कठोर तप करते हैं। इसलिए शुभ समय में अस्तगामी को सूर्य को अर्घ्य देकर पुण्य फल प्राप्त करना चाहिए।